सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/३२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(३०५)

पच्चीस वर्ण की रचना

दोहा

चेरी चंदन हाथ कै, रीझ चढ़ायो गात।
विह्वलक्षितिवर डिभशिशु, फूले वपुष नमात॥१६॥

जब चेरी (कूवरी दासी) ने, रीझ कर, श्री कृष्ण के शरीर पर चंदन लगाया, तब राजा कंस बहुत विह्वल (व्याकुल) हुआ और बालरूप धारी कृष्ण फूले न समाये।

चौबीस वर्ण की रचना

दोहा

अघ, वक, शकट, प्रलंब हनि, मारयो गज चाणूर।
धनुषभजि दृढ़दौरि पुन, कंसमथ्यो मद मूर॥१७॥

(श्री कृष्ण ने) अघासुर, बकासुर, शकटासुर और प्रलबासुर को मारकर (कुवलया हाथी) और चाणूर का संहार किया। फिर दौड़कर मतवाले कंस के दृढ़ धनुष को तोड़ते हुए, उसे भी मार डाला।

तेईस वर्ण की रचना

दोहा

सूची यशुमति नन्द पुनि, भोंरे गोकुलनाथ।
माखनचोरी भूठ हठ, पढ़े कौन के साथ॥१८॥

यशोदा जो सीधी है और गोकुलनाथ नन्द भी भोले-भाले है फिर बताओ मक्खन की चोरी करता, झूठ बोलना वथा हठ करना, किनके साथ रहकर सीखा है?

बाईस वर्ण की रचना

दोहा

हरि दृढ़ बल गोविन्द विभु, मायक सीतानाथ।
लोकप विट्ठल शङ्खधर, गरुड़ध्वज रघुनाथ॥१९॥

२०