पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/३२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(३०६)

इक्कीस वर्ण की रचना

सवैया

जैसे तुम सब जग रच्यो, दियो काल के हाथ।
तैसे अब दुख काटि, करमफन्द दृढ़ नाथ॥२०॥

जैसे आपने सारी सृष्टि रचकर, काल के हाथ में (नाश करने के लिए) दे दी है, वैसे ही, हे नाथ! मेरे दुःखो तथा कर्म फंदो को भी काट दीजिए।

बीस अक्षर की रचना

दोहा

थके जगत समुझाय सब, निपट पुराण पुकारि।
मेरे मनमे चुभि रहे, मधुमर्दन मुरहारि॥२१॥

जगत के सब लोग मुझे समझा समझा कर हार गये और पुराण भी पुकार पुकारकर रह गये, परन्तु मेरे मन में तो मधुराक्षस को मारनेवाले तथा मुरारि (श्री कृष्ण) ही चुभे हुए है।

उन्नीस अक्षर की रचना

दोहा

को जानै को कहिगयो, राधा सो यह बात।
करी जु माखनचोरि वलि, उठत बड़े प्रभात॥२२॥

पता नहीं, राधा से यह बात कौन कह गया कि मैं बलि जाऊँ, बड़े प्रातः उठते ही मैंने देखा है कि किसी ने तुम्हारे यहाँ मक्खन की चोरी की है।'

अठारह अक्षर की रचना

दोहा

यतन जमारो नेहतरु, फूलत नन्दकुमार।
खंडत कंस कत जो न अव, कपट कठोर कुठार॥२३॥