( ३.७ )
हे नन्द कुमार यत्न से जमाए हुए प्रेम-वृक्ष को, फूलते देखकर,
कपट के कठोर कुल्हाडे से उसे काटने मे आपका मन दुखी नहीं
होता?
सत्रह अक्षर की रचना
____ दोहा
बालापन गोरस हरे, बड़े भये जिमिचित्त ।
तिमि केशव हरि देहहू, जो न मिलो तुम मित्त ॥२४॥
हे मित्र, यदि तुम मिलना नहीं चाहते हो जिस प्रकार बचपन मे
गोरस चुराया और बडे होने पर मन की चोरी की, उसी प्रकार है
श्रीकृष्ण | मेरी देह को भी अब हरण कर लो।
सोरह अक्षर
दोहा
तुम घरघर मड़रात अति, बलिभुक से नंदलाल ।
जाकी मति तुमही लगी, कहा करै वह बाल ॥२॥
हे नदलाल | तुम तो घर-घर पर कौए की तरह मँडराते रहते हो,
पर जिसका मन तुम्हीं मे लगा हुआ है, वह बेचारी बाला क्या करे ?
पंद्रह अक्षर
दोहा
जो काहूपै वह सुने, ढूंढत डोलत साझ ।
तौ सिंगरो ब्रज डूबिहै, पाके असुवन मांझ ॥२६॥
( कोई एक गोपी श्रीकृष्ण से कहती है कि) यदि वह राधा किसी
से यह सुन लेगी कि 'तुम सध्या होते ही किसी अन्य स्त्री को खोजते
फिरते हो, वो उसके आंसुओ से सारा ब्रज डूब जायगा' अर्थात् वह इस
समाचार को सुनकर बहुत रोवेगी।
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/३२५
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