चौदह अक्षर
___ दोहा
दृका ढाकी दिनकरौ, टकाटकी अरु रैनि ।
चामे केशव कौन सुख, घेरुकरैषिकबैनि ॥२०॥
तुम दिन मे तो लुक-छिपकर और रात मे टकटकी लगाकर देखा
करते हो हे कृष्ण ! इसमे भला कौन सा सुख मिलता है । इसकी तो बहुत
सी पिक बैनो स्त्रिया निन्दा ही करती हैं ।
तेरह अक्षर
दोहा
कहो और को मै सुन्यों, मन दीनो हरिहाथ ।
वा दिनते बन में फिरै को जानै किहि साथ ॥२८॥
मैने दूसरो का कहना मान कर, अपना मन श्रीकृष्ण के हाथ मे दे
दिया | उसी दिन से वह मन, न जानें, किसके साथ, बन बन मे घूमता
फिरता है।
बारह अक्षर
दोहा
काहू बैरिन के कहे, जी जुरि गयो सनेहु ।
तोरेते टूटै नहीं, कहा करो अलेहु ।।२६।।
किसी बैरिन के कहने से, मेरे मन में स्नेह जुड़ गया। अब वह
तोड़ने पर भी नहीं टूटता । लो अब मैं क्या करूँ ।
ग्यारह अक्षर
दोहा
वे सब सोहै कालकी, बिसरी गोकुल राज ।
मुख देखो लै मुकुरकर, करी कलेवा लाज ।।३०।।
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/३२६
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