पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/३२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(३०९)

हे गोकुल राज (कृष्ण) तुम्हें कल की सब शपथे भूल गई? तनिक दर्पण लेकर अपना मुँह तो देखो। तुम तो जैसे लज्जा का कलेवा कर गए हो।

दश अक्षर

दोहा

लै ताके मनमानिकहि, कत काहूपै जात।
जब कहूँ जिय जानिहै, तब कैहै कह बात॥३१॥

उसके मनरूपी माणिक्य को लेकर अब किसी और के पास क्यों जाते हो? इस बात को जब वही किसी तरह जानेगी, तब भला क्या कहेंगी?

नव अक्षर

दोहा

वचू चुँगै अँगारग जाको कर जियजोर।
सोऊ जो जारै हिये, कैसे जियै चकोर॥३२॥

जिसके बल को हृदय में धारण करके, चकोर अंगारो को चुगा करता है, वही यदि हृदय को जलाने लगे, तो चकोर बेचारा कैसे जीवित रह सकेगा?

आठ अक्षर

दोहा

नैन नवावहु नेकहू, कमलनैन नवनाथ।
बालन के मनमोहिलै, बेचे मनमथ हाथ॥३३॥

हे नये स्नेही! हे कमल नयन! तनिक आँखे नीची करो। तुमने स्त्रियो के मनो को मोहित करके, (अपने पास न रख कर) कामदेव के हाथ उन्हें बेच डाला?