सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( २४ )

मित्र गण के साथ यदि मित्र गण हो तो ऋद्धि-सिद्ध बढ़ती हैं। 'मित्र गण' के साथ 'दास गण' होने पर युद्ध मे त्रास नहीं होता। ( हारना नहीं पड़ता)। मित्र गण के साथ उदासीन गण आवे तो गोत्र या कुटुम्ब को दुख देते हैं और जो मित्र गण तथा शत्रु गण साथ हो तो बन्धु-हानि होती है। 'केशवदास' कहते है कि यदि दास गण और मित्र गण साथ पडे तो कार्य सिद्ध होता है और जो दास गण साथ-साथ पडे तो सभी जीवो को वश मे कर लेते है। यदि 'दास गण' और 'उदासीन गण' साथ-साथ हो तो आस-पास धन का नाश होता है तथा 'दास-गण' और शत्रु गण के एक साथ होने पर मित्र भी शत्रु जैसा हो जाता है।

कवित्त

जानिये उदास ते जु मित्र गन तुच्छ फल,
प्रगट उदास तें जु दास प्रभुताइये।
होइ जो उदास ते उदास तो न फलाफल,
जो उदास ही ते शत्रु तो न सुख पाइये॥
शत्रु तें जु मित्रगन ताहि सो अफलगन,
शत्रु ते जु दास आशु बनिता, नसाइये।
शत्रु ते उदास कुल नाश होय केशौदास,
शत्रु ते जु शत्रु नाश नायक को गाइये॥२९॥

यदि 'उदासीन गण' और 'मित्रगण' साध हो तो तुच्छ फल समझो। 'उदासीन गण' और 'दास गण' के मेल से प्रभुता प्राप्त होती है। यदि उदासीन गण साथ-साथ हो तो फलाफल कुछ नहीं होता और जो उदासीनगण तथा 'शत्रु गण' का साथ हो तो सुख नहीं मिलता। जो 'शत्रुगण' और 'मित्रगण' एक साथ हो तो विफल होते है और यदि शत्रुगण का 'दास गण' के साथ मेल हुआ तो शीघ्र ही स्त्री का नाश हो जाता है। 'केशवदास' कहते है कि 'शत्रुगण' और 'उदासीन