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चरणगुप्त
दोहा
इन्द्रजीत संगीतलै, किये रामरस लीन ।
क्षुद्रगीत संगीतलै, भये कामबस दीन ।।७७॥
चरणगुप्त चक्र
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| जी स त | किरा र ली
द्र | त गी लै ये म स । न
क्षु | गी| स त । भ का व | दी
[इसमे दोहे का एक चरण लुप्त सा हो जाता है। बीच वाली पक्ति
पर तथा नीचे वाली दोनो पक्तियो से मिल जाती है ]
गतागत चतुर्पदी
रा का राज
मा । स | मा | स
राधा मी त
| सा | ल । सी । सु ।
राकाराज जराकारा मासमास-समासमा ॥
राधाम त-तमीधारा-सालसीसु-सुसीलसा ॥८॥
( वियोग मे ) राकाराज (पूनो का चाँद ) जराकारा (ज्वर जैसा)
मास-मास तथा वर्ष, वर्ष प्रतीत होता है। मति राधा को भी
अर्थात् रात, धारा (तलवार की धार) की भाँति शिर पर शालती