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[ इनमें 'नवरङ्गराय प्रवीन' चरणगुप्त हो जाता है और १, २,
३,४ आदि अको द्वारा सूचित अक्षरो को जोडकर पढने से प्रकट हो
जाता है]
चक्रवन्ध (दोहा)
मुरलीधर मुख दरसि मुख, संमुख मुख श्रीधाम ।
सुनि सारस नैनी सिखे, जी सुख पूजै काम ॥२॥
KAREI644304
का
जे
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सर्वतोभद्र
कामदेव चित्त दाहि, वाम देव मित्त दाहि ।
रामदेव चित्त चाहि, धाम देव नित्त ताहि ॥३॥
कार
HA
इसको कामधेनु भी कहते हैं