लोक विरोधी दोष स्थायी वीर सिंगार के, करुणा घृणा प्रमान । तारा अरु मन्दोदरी, कहत सतीन समान ॥५४॥ वीर और शृगार के स्थायी के साथ करुणा तथा घृणा का वर्णन करना और तारा तथा मन्दोदरी को सती स्त्रियो के समान कहना लोक विरुद्ध है। न्याय तथा आगमविरोधी दोष । पूजौ तीनौ वर्ण जग, करि विश्न सो भेद । पुनि लीबो उपवीत हम, पढि लीजै सब वेद ॥८॥ ब्राह्मणो को छोडकर तीनो वर्णो की पूजा करो। हम पहले वेद पढले तब यज्ञोपवीत लेंगे। [ इन दोनो वाक्यो मे पहले वाक्य मे नीति-विरोध है और दूसरे मे आगम या शास्त्र-विरोध है। ] यहि विवि औरौ जानियहु, कविकुल सकल विरोध । केशव कहे कळूक अव, मूढन के अविरोध ॥५६।। हे कवि लोगो। इस तरह विरोधो के और भी बहुत से भेद समझ लो। 'केशवदास' कहते है कि मैने उनमे से कुछ ही ऐसे भेदो का वर्णन किया है जिनका मूढ भी विरोध न करेंगे। केशव नीरस विरस अरु, दु:संधान विधानु । पातर दुष्टादिकन को, 'रसिक प्रिया' ते जानु ॥६०॥ 'केशवदास' कहते है कि 'नारस', 'विरस' 'दु सन्धान' और 'पात्र दुष्ट' आदि दोषो को 'रसिक प्रिया' ग्रन्थ से समझ लो।