काव्यालङ्कार
दोहा
यदपि सुजाति सुलक्षणी, सुवरनसरस सुवृत्त।
भूषण बिन न विराजई, कविता वनिता मित्त॥१॥
हे मित्र! कविता यद्यपि सुजाति ( उच्चकोटि की ), सुलक्षण अच्छेलक्षणो वाली ) सुवरनसरस ( अच्छे रसीले अक्षरो से युक्त) और सुवृत्त अच्छे छन्दो वाली ) हो, तो भी बिना भूषण ( अलंकार ) के अच्छी नहीं लगती। इसी तरह से स्त्री भी सुजाति ( अच्छे वश की ) सुलक्षणी ( अच्छे लक्षणो वाली ) सुवरनसरस अच्छे रंग की या गौरवर्ण तथा रसीली ) और सुवृत्त ( अच्छा बोलने वाली ) हो, तो भी बिना भूषण या ( गहनो ) के अच्छी नहीं लगती।
कविन कहे कवितानिके, अलङ्कार द्वै रूप।
एक कहे साधारणहिं, एक विशिष्ट स्वरूप॥२॥
कवियो ने काव्यालङ्कारो के दो रूप वर्णन किये है। एक को साधारण कहते है और दूसरे को विशिष्ट।
सामान्य
सामान्यालङ्कार को, चारि प्रकार प्रकास।
वर्ण, वणर्य भू-राज श्री, भूषण केशवदास॥३॥
'केशवदास' कहते हैं कि सामान्यलड़्कार के चार प्रकार हैं। (१) वर्ण (२) वर्ण्य (३) भूमि-श्री (४) राज्य-श्री।
(५) वर्णालङ्कार
श्वेत, पीत, कारे, अरुण, धूम्र, सुनीले, वर्ण।
मिश्रित, केशवदास कहि, सात भॉति शुभ कर्ण॥४॥