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'केशवदास' कहते है कि कविता मे श्वेत पीला, काला लाल, धूम्र नीला और मिश्रित ये सातरंग ही शुभकरण (मंगलकारी) माने जाते है।

श्वेत वर्णन

कीरति, हरिहय, शरदघन, जोन्ह, जरा, मदार।
हरि, हर, हरगिरि, सूर, शशि, सुधासौध घनसार॥५॥

कीर्ति, इन्द्र, शरदघन, चादनी, बुढापा, कल्पवृझ, हरि ( श्री विष्णु ) हर श्री महादेव ), कैलाश पर्वत, सूर्य, चन्द्रमा, चूना और कपूर।

बल, बक, हीरा, केवरो, कौड़ा करका कांस।
कुंद केचुली कमल, हिमि, सिकता भसम कपास॥६॥

श्री बलदेव जी, बगुला, हीरा, केवडा, कौड़ी, ओला, कास, कुद, केचुली, कमल, बर्फ, बालू, भस्म और कपास।

खाँड़, हाड़, निर्भर चॅवर, चंदन, हस, मुरार।
छत्र, सत्ययुग, दूध, दधि, शंख, सिंह, उड़मार॥७॥

खाड़ ( चीनी ) हाड़, झरना, चँवर, चन्दन, हस कमल की जड, छत्र, सत्ययुग, दूध, दही, शख, सिंह और तारे।

शेष, सुकृति, शुचि, सत्त्वगुण, संतन के मन, हास।
सीप, चून, भोडर, फटिक, खटिका, फेन प्रकास॥८॥

शेषनाग, सुकृति ( पुण्य ) सत्त्वगुण सज्जनो का हास्य, सीप, चूना, अबरक, स्फटिक, खड़िया, फेन और प्रकाश।

शुक्र, सुदरशन, सुरसरित, वारन, बाजि, समेत।
नारद, पारद, अमलजल, शारदादि सब श्वेत॥९॥

शुक्र, सुदर्शन, सुरसरित ( गंगा ) सुरवारन ( ऐरावत ), सुरवाणि ( उच्चैश्वा ), नारदमुनि, पारद ( पारा ), निर्मल जल और शारदाजी ( सरस्वती ) ये सब श्वेत है।