पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/६०

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श्री बलराम जी ने अपने शरीर की द्युति बनाया। चन्द्रमा ने अपनी किरणें, ब्रह्माजी ने वाणी और बिमल विचार वाले मुनियो ने अपने मन, ब्राह्मणो ने जनेऊ और शंखपाणि ( श्री नारायण ) ने अपने हाथ का अपार सुखदायी शख उसी यश को बनाया है। 'केशवदास' कहते है कि स्त्रियो मे विलास और मृदुहास्य का उदार उदय उसी से होता है। अत हे राजा रामचन्द्र। आपका सुयश सारे जगत की शोभा का कारण बन रहा है।

उदाहरण-३

कवित्त

नारायण कीन्हीं मनि, उर अवदात गनि,
कमला की वाणी मनि, शोभा शुभसारु है।
'केशव' सुरभि केश, शारदा सुदेश वेश,
नारद को उपदेश, विशद बिचारु है॥
शौनक ऋषी विशेषि, शीरष शिखानि लेखि,
गङ्गा की तरंग देखि, विमल विहारु है।
राजा दशरथ सुत सुनौ राजा रामचन्द्र,
रावरो सुयश सब जग को सिंगारु है॥१२॥

श्री नारायण ने उसे अपने उदार हृदय की मणि ( कौस्तुभ ) बनाया है। लक्ष्मी जी की वारणी तथा शोभा का शुभ सार भी वही है। 'केशव' कहते है कि चमरी गाय ने अपने केश और सरस्वती जी ने अपना सुन्दर वेश उसी यश से बनाया है। नारद जी का उपदेश तथा उनके विशद विचार उसो से निर्मित हुए हैं। शौनकादि ऋषियो की चोटिया, गङ्गाजी की लहरे तथा जीवो के निर्मल व्यवहार भी उसी से बने है। अत हे राजा रामचन्द्र! आपका सुयश सारे ससार की शोभा का कारण बन रहा है।

जरावर्णन

सवैया

बिलोकि शिरोरुह श्वेतसमेत, तनोरुह केशव यो गुण गायो।
उठे किधौ आयु की औधिकेअँकुर, शूल कि सुख समूल नशायो॥
लिख्यो किधौ रूपके पाणि पराजय, रूपको भूप कुरूप लिखायो।
जरा शरपंजर जीव जरयो कि जुरा जरकंबर सो पहिरायो॥१३॥