पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/६२

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कर नष्ट कर दिया है। 'केशव' कहते है कि अथवा ये सफेद बाल व्याधियो ( शारीरिक रोगो ) की जडे है या आधि ( मानसिक रोगो ) के अकुर है, जिनका अत नहीं मिलता। जरा ( बुढापे ) ने जीव को चारो ओर वाणो से घेर लिया है अथवा मृत्यु ने जीव को जरी का कम्बल पहना दिया है।

(२) पीतवर्णन

दोहा

हरिवाहन, विधि, हरजटा, हरा, हरद, हरताल।
चपक, दीपक, वीररस, सुरगुरू, मधु सुरपाल॥१६॥

गरुड, ब्रह्माजी, शिवजी की जटाएँ, हल्दी, हडताल, चपक, दीपक, वीर-रस, वृहस्पति, मधु और इन्द्र।

सुरगिरि, भू, गोरोचना, गंधक, गोधनमूत।
चक्रवाक, मनशिल सदा, द्वापर, वानरपूत॥१७॥

सुमेरु पर्वत, पृथ्वी, गोरोचना, गधक, गोमूत्र, चकवा, मैनशिल, द्वापर-युग और बन्दर का बच्चा।

कमलकोश, केशव-बसन, केतरि, कनक, सभाग।
सारोमुख, चपला, दिवस, पीतरि, पीतपराग॥१८॥

हे सभाग! कमल का बीजकोश, केशब-बसन ( श्रीकृष्ण का वस्त्र-पीताम्बर ) केशर, सोना, मैना का मुख, बिजली, दिन, पीतल और पराम ये सब पीले माने जाते है।

उदाहरण

सवैया

मगलही जु करी रजनी विधि, याहिते मंगली नाम धरयो है।
दीपति दामिनि देहसवॉरि, उड़ायदई धन जाइ वरयो है॥
रोचनको रचि केतकी चपक फूलनि में अॅगवासु भरयो है।
गौरि गोराईको मैल मिलैकरि, हाटक ते करहाट करयो है॥१९॥

श्रीब्रह्माजी ने पार्वती जी के मागल्य गुणो से युक्त हल्दी बनाई, इसीसे उसका नाममगली पडा। उनके शरीर की दीप्ति से बिजली का निर्माश