पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/६४

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मारग अगिनि, किसान नर, लोभ, क्षोभ, दुख,:द्रोह।
विरह, यशोदा, गोपिका कोकिल, महिषी, लोह॥२४॥

अग्नि का मार्ग, किसान, मनुष्य, लोभ, क्षोभ, दुख, द्रोह, विरह, यशोदा, ग्वालिन, कोयल, भैस और लोहा।

कांच, चीक, कच, काम, मल, केकी, काक, कुरूप।
कलह छुद्र, छल आदिदै, काले कृष्णस्वरूप॥२५॥

काच, कील, बाल, मोर, कौआ कुत्सितरूप, कलह, क्षुद्र छल आदि भाव और श्रीकृष्ण का स्वरूप---ये काले रंग के माने जाते है।

उदाहरण--(१)

कवित्त

बैरिन के बहु भांति देखत ही लागि जाति,
कालिमा कमलमुख सब जग जानी है।
जतन अनेक करि यदपि जनम भरि,
धोवत हू न छूटत केशव बखानी है॥
निज दल जागै जोति, पर दल दूनी होति,
अचला चलति यह अकह कहानी है।
पूरन प्रताप दीप अंजन की राजै रेख,
राजै श्रीरामचन्द्र पानि न कृपानी है॥२६॥

सारा ससार जानता है कि श्रीरामचन्द्र की तलवार को देखते ही वैरियो के कमल-मुख मे कालिमा लग जाती है। केशव' कहते है कि वह कालिमा जन्म भर यत्ल करने पर भी धोने से नहीं छूटती। उसकी जितनी ज्योति अपने दल मे होती है उससे दूनी शत्रुओ के दल मे होती है। उसके भय से पृथ्वी डगमगा जाती है, उसकी कथा अकथनीय है। श्रीरामचन्द्र के हाथ म जो तलवार सुशोभित हो रही है, वह तलवार नहीं प्रत्युत उनके पूर्ण प्रताप रूपी दीपक के काजल की रेखा है।