( ५२ )
कोकिल, चाख, चकोर, पिक, पारावत नख नैन ।
चचु चरन कलहंस के, पाकी कुंदरू ऐन ॥३०॥
कोयल, चाख ( नीलकठ), चकोर, पिक ( पपीहा ) और पारावत
( कबूतर ) पक्षियो के नख तथा आँख, हस की चोच तथा चरण और
पका हुआ कुन्दरू।
जवाकुसुम दाडिमकुसुम, किशुक कंज अशोक ।
पावक, पल्लव वीटिका, रग रुचिर सब लोग ॥३१॥
जवाकुसुम ( गुडहर का फूल ), दाडिम कुसुम ( अनार का फल )
किंशुक पुष्प, कज ( कमल ), अशोक, पावक । अग्नि ) और वोटिका
(पान का बीडा)।
रातो चदन, रौद्ररस, छत्रीधर्म मॅजीठ ।
अरुण, महाउर, रुधिर नख, गेरू, संध्या ईठ ॥३२॥
लाल चदन, रौद्ररस, क्षत्रिय का धर्म मजीठ, अरुण
(सूर्य के सारथी ), महावार, रुधिर रक्त , नख, गेरू, और
सध्या हे मित्र । ये सभी सुन्दर लाल रंग के माने जाते है।
उदाहरण
सवैया
फूले पलास विलासथली बहु केशवदास हुलास न थोरे ।
शेष अशेष मुखानलकी जनु, ज्वालविशाल चली दिविओरे ।।
किशुक श्रीशुकतुडनि की रुचि, राचै रसातलमे चितचोरे ।
चंचुनिचापि चहूँ दिशि डोलत, चारुचकोर अँगारनि भोरे ॥३॥
'केशवदास' कहते हैं कि विलास्थली मे बहुत से पलास के वृक्ष
फूल रहे है, जहाँ कम आनन्द नहीं होता। उन फूलो को देखकर ऐसा
ज्ञात होता है, मानो शेषनाग जी के मुखो की अग्नि की बडी-बडी लपटें
आकाश की ओर चली जा रही हैं । पलास के पुष्प तोते की चोच की
भाँति रगदार है और इस पृथ्वी भर मे लोगो का चित्त चुराये लेते है।
चकोर पक्षी (इन फूलो को) धोखे से अगार मानकर अपनी चोच मे
दबाए हुए चारो ओर घूमते हैं।
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/६६
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