५-धूम्र वर्णन
दोहा
काककण्ठ, खर, मूषिका, गृहगोधा भनि भूरि ।
करभ, कपोतान, आदिदै, धूम्र, धूमिली, धूरि ॥३४॥
कौए की गर्दन, गदहा, चुहिया, गृहगोधा (छिपकली ), करभ
(कॅट , कबूतर, धूमिली ( धुए के रग की गाय ), और धूल इत्यादि
धूम्र-वर्ण के कहे जाते है।
उदाहरण
सवैया
राघवकी चतुरगचमू चपि धूरि उठी जलहूँ थल छाई ।
मानो प्रताप हुताशन धमसी, केशवदास अकास न माई ।।
मेटिकै पंच प्रभूत किधौ, विधि रेनुमई नवरीति चलाई।
दुःख निवेदन को भवभारको, भूमि मनौ सुरलोक सिधाई ॥२५॥
श्रीरामचन्द्र जी की चतुरगिणी सेना के सिपाहियो ( तथा हाथी
घोडी ) के पैरो से दब कर जो वूल उठ रही है, वह जल और स्थल
सभी जगहो पर छा गई है। 'केशवदास' कहते है कि वह धूल ऐसी
जान पडती है मानो उनके प्रताप रूपी अग्नि का धुआँ है जो आकाश
मे भी नहीं समा पाता । अथवा ( यह उडी हुई धूल ऐसी लगती है कि )
ब्रह्मा ने मानो पाँच त. वो को हटाकर केवल धूलमयो रचना करने का
नई प्रणाली चलाई है। या ऐसा जान पडता है कि अपने भार के
दु.ख को सुनाने के लिए पृथ्वी स्वर्गलोक को चली जा रही है।
६ नील वर्णन
दोहा
दूब, वंश, कुवलय, नलिन, अनिल, व्योम, तृण, बाल ।
मरकतमणि, हयसूरके, नीलवरण सेवाल ॥३६॥
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/६७
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