पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/६८

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दूब ( दूर्वा घास , कुवलय (नीला कमल), नलिन, नीली कुमुदनी) अनिल वायु ), व्योम ( आकाश ), तृप्ण, बाल ( केश ), मरकत मणि ( नीलम ) सूर्य के घोडे और सैवाल सिवार ) नील रग के माने जाते है।

उदाहरण

सवैया

कण्ठ दुकूल सुअोर दुहूँ उर यों, उरमै बलकै बलदाई।
केशव सूरजअशनि मडि, मनो जमुनाजलधार सिधाई॥
शकरशैल शिलातलमध्य, किधौ शुककी अवली फिरि आई।
नारद बुद्धिविशारद हाय, किधौ तुलसीदलमाल सुहाई॥३७॥

शक्तिदायी श्री बलराम जी के गले मे दुकूल ( दुपट्टे ) के दोनो छोर हृदय पर लटक रहे है। 'केशवदास' कहते है कि वे ऐसे ज्ञात होते है मानो सूय ने यमुना के जल की धारा को अपनी किरणो से युक्त करके वहीं से उतारा है। अथवा ऐसा जान पडता है मानो कैलाश पर्वत पर तोतो की पक्ति बैठी हुई है या बुद्धिमान नारद जी के हृदय पर तुलसी दल को माला झूल रही है।

मिश्रित वर्णन

( क ) श्वेत और काला

सिंहकृष्ण हरि शब्दगुनि, चंद विष्ण बिश्धु देखि।
अभ्रकधातु आकाश पुनि, श्वेत श्याम चित लेखि॥३८॥

हरि शब्द के सिंह और कृष्ण दो अर्थ है इसलिए अर्थ के अनुकूल ही रग मानना चाहिए अर्थात् जब सिंह का अर्थ निकले तब श्वेत और श्री कृष्ण का अर्थ हो तब काला समझना चाहिए। इसी तरह 'बिधु' शब्द के भी दो अर्थ होते हैं, 'चन्द्रमा' और विष्णु' इनमे से 'चन्द्रमा' श्वेत और 'विष्णु' श्याम माने जायेगे। 'अभ्रक' के भी दो अर्थ होते है (१) 'अभ्रक' धातु और। (२) आकाश। 'अभ्रक' श्वेत और 'आकाश' काला माना जायगा।