पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/७०

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'कृष्ण नदीवर' शब्द से 'गगा' और 'समुद्र' दो अर्थ निकलते है। पहले अर्थ से श्वेत रग और दूसरे से काला मानना चाहिए। इसी प्रकार 'नीरद' 'मुंह से निकले हुए दाँत' और 'बादल' दोनो को कहते है। पहला श्वेत रग का सूचक है और दूसरा काले रग का।

(ख) श्वेत और पीत

शिव विरंचिसों 'शभु' भणि, रजतरजत अरु हेम।
स्वर्ण शरभ सो कहत है, अष्टापद करि नेम॥४३॥

'शभु' शब्द से शिवाजी और ब्रह्मा जी दोनो माने जाते है। जब 'शिवाजी' अर्थ होगा तब श्वेत रग माना जायगा और जब 'ब्रह्मा' अर्थ होगा तब पीला। इसी प्रकार रजत' शब्द 'चादी' के अर्थ में श्वेत और 'सोने' अर्थ मे पीला मानिए। 'अष्टापद' सोने और शरभ नामक जन्तु को कहते हैं। पहले अर्थ मे पीला और दूसरे अर्थ मे श्वेत रग मानना चाहिए।

सोम स्वर्ण अरु चद कलधौत रजत अरु हेम।
तारकूट रूपो रुचिर, पीतरि कहिकरि प्रेम॥४४॥

सोम 'शब्द' 'सोना' और 'चन्द्रमा' दोनो के लिए प्रयुक्त होता है। सोना पीला समझिये और चन्द्रमा श्वेत। 'कलधौत' शब्द के दो अर्थों मे से चाँदी को श्वेत और सोने को पीला मानिए 'तारकूट' के दो अर्थ 'चाँदी' तथा 'पीतल' मे से चाँदो श्वेत रग की सूचक मानी जायगी और 'पीतल' पीले रंग की।

(ग) श्वेत और लाल

श्वेतवस्तु शुचि, अगिनि शुचि, सूर सोम हरि होइ।
पुष्कर तीरथ सों कहैं पंकज सों सब लोइ॥४५॥

'शुचि' श्वेत को भी कहते हैं और 'अग्नि' को भी। पहला अर्थ श्वेत रग का सूचक है और दूसरा लाल रंग का। इसी तरह 'हरि' शब्द के भी दो अर्थ होते है--सूर्य तथा चन्द्रमा। सूर्य लाल रंग के सूचक हैं