उदाहरण (१)
। तीक्ष्ण )
कवित्त
सै हथी हथ्यार हू ते अति अनियारे, काम,
शर हू ते खरे खल वचन विशेखिये।
चोट न वचत ओट किये हू कपाट कोट,
भौन भौहरे हू भारे भय अवरेखिये ।
'केशौदास' मंत्र, गद, यत्रऊ न प्रतिपक्ष,
रक्ष, लक्ष-लक्ष बज्र रक्षक न लेखिये ।
भेदत है मर्म, वर्म ऊपर कसेई रहै,
पीर घनी घायलन घाय पैरन देखिये ॥१६॥
खलो के बचन काम के वाणो से भी तीक्ष्ण है। ये बरही और
दूसरे हथियारो से भी अधिक नुकीले है। किवाडो को ओट करने पर
भी इनसे कोई बच नहीं पाता । घर तथा तहखाने गे रहने पर भी
इनसे बडा भारी डर लगा रहता है । 'केशवदास' कहते है कि इन पर
मत्र, गद ( मरहम लेप , और यंत्र भी कुछ काम नहीं करते और लाखो
बज्र और रक्षक भी इनसे नहीं बच पाते। ऊपर वर्म ( कवच ) के कसे
रहने पर भी मर्म स्थल बेध डालते हैं। गहरी चोट पहुचाते हैं परन्तु घाव
नहीं दिखलाई पडता।
उदाहरण (२)
(गुरु)
सवैया
पहिले तजि आरस आरसी देखि, घरीक घसे घनसारहि ले।
पुनि पोंछि गुलाब तिलोंछि फुलेल अगौछनि आछे अगौछनि कै॥
कहि केशव मेद जवादिसों माजि, इतेपर आंजे मै आजन दै।
बहुरथो दुरि देखौं तौ देखौ कहा, सखिलाजतौलोचनलागियेहै ॥१०॥
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/७७
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