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पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/७८

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पहले आलस्य छोडकर दर्पण देखा, फिर एक घडी तक कपूर लेकर घिसा। फिर गुलाब जल से धोकर और फुलेल ( इत्र ) मलकर अगोछे से भली भाँति पोछ डाला। 'केशव' कहते हैं कि कस्तूरी जुवाद आदि से माज कर आँखो मे अजन दिया। हे सखि! इतना करने पर भी ( नायक को ) जो छिपकर देखा तो देखती क्या है कि लज्जा तो आँखो मे ज्यो की त्यो लगी ही हुई है।

८--कोमलवर्णन

दोहा

पल्लव, कुसुम, दयालु-मन, माखन, मैन, मुरार।
पाट, पामरी, जीभ, पद प्रेम, सुपुण्य विचार॥१८॥

पल्लव, कुसुम, दयालुमन, मक्खन, मैन ( मोम ), मुरार ( कमल की जड ), पाट रेशम, पामरी ( रेशमी वस्त्र ), जीभ, 'द, प्रेम आर पुण्य कोमल माने जाते हैं।

उदाहरण

कवित्त

मैन ऐसो भन मृदु, मृदुलमृणालिकाके,
सूतकैसी स्वरधुनि मनहिं हरति है।
दारयो कैसे बीज दॉत पातसे अरुण ओंठ,
केशौदास देखि दृग आनन्द भरति है॥
येरी बीर तेरी मोहि भावत भलाई ताते,
बूझतिहौ तोहि और बूझति डरति है।
माखनसी जीभ मुखकंजसो कोंवर कहि,
काठसा कठेठा बातैं कैसे निकरति हैं॥१९॥

तेरा मन मोम जैसा कोमल है, मृणाल के सूत जैसी कोमल तेरी स्वर-ध्वनि मन को हरनेवाली है। अनार के बीज जैसे तेरे दाँत हैं, पल्लव जैसे लाल ओठ और ( केशवदास-सखी की ओर से कहते हैं कि ) तेरी