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बीच रह भी सकती हूँ। मै जन्मभर रहने वाला घोर ज्वर-जिसके पूर्ण
परिताप का वर्णन नहीं किया जा सकता-सह सकती हूँ । मै सूर्य की गर्मी
तथा शत्रु का परिताप भी सह सकती हूँ, परन्तु मुझसे श्री रघुनाथ जी के
विरह का सताप नहीं सहा जाता।
१७-सुरूपवर्णन
दोहा
नल, नलकूवर, सुरभिषक, हरिसुत, मदन, निहारि।
दमयन्ती, सीतादि तिय, सुन्दर रूप विचारि ॥४१॥
नल, नलकूवर ( कुवेर का एक पुत्र ), सुरभिषक ( देवताओ के
वैद्य ) हरिसुत (श्रीकृष्ण के पुत्र-प्रद्य म्न ), मदन ( कामदेव ) और
दमयन्ती तथा श्री सीता आदि स्त्रियाँ सुन्दर माने जाते है।
उदाहरण '
कवित्त
को है दमयन्ती, इन्दुमती, रति, राति दिन,
होहि न छबीली, छन-छवि जो सिङ्गारिये ।
वदन निरूपन निरूपम निरूप भये,
चन्द बहुरूप अनुरूप कै बिचारिये ।
'केशव' लजात जलजात जातवेद अोप,
। जातरूप बापुरो, विरूप सो निहारिये ।
सीता जी के रूप पर देवता कुरूप को है,
रूपही के रूपक तौ बारि बारि डारिये ॥४२॥
श्री सीता जी के रूप के सामने दमयन्ती, इन्दुमती और रति क्या
हैं । यदि उन्हे बिजली की शोभा से रात दिन सजाया जाय तो भी वे
वैसी सुन्दर न होगी। केशवदास' कहते है कि उनकी सुन्दरता से कमल
लज्जित हो जाता है अग्नि की चमक छिप जाती है और बेचारा सोना
तो कुरूप सा दिखलाई पडता है। चन्द्रमा बहुत से रूप रखने वाले बहु-
रुपियो के समान ही जान पडता है। श्री सीता जी के रूप के आगे देव-
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/८७
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