पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/८८

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ताओ की कुरूप स्त्रियाँ क्या हैं? उनकी सुन्दरता पर तो सौदर्यकीसभी उपमाएँ निछावर कर देनी चाहिए।

१८-क्रूर स्वरवर्णन

दोहा

झीगुर, सांप, उलूक, अज, महिषी, कोल, बखानि।
भेडि, काक, वृक, करम, खर, श्वान, कर-स्वर जानि।

झींगुर, साप, उल्लू, बकरा, भैंस, सूअर, भेड, कौआ, वृक, (भेडिया) ऊँट, गदहा और कुत्ता, क्रूर-स्वर वाले समझो।

उदाहरण

कवित्त

भिल्ली ते रसीली जीली, रांटी हू की रट लीली,
स्यारि ते सवाई भूत भामिनी ते आगरी।
'केशौदास' भैंसन की भामिनी ते भासै भास,
खरी ते खरीसी धुनि ऊँटी ते उजागरी।
भेड़नि की मीड़ी मेड़, ऐड न्यौरा नारिन की,
बोकी हूँ ते बॉकी, बनी काकन की कागरी।
सूकरी सकुचि, संकि कूकरियो मूक भई,
घु घू की घरनि को है, मोह नाग नागरी॥४४॥

किसी कठोरवाणीवाली स्त्री का वर्णन करते हुए 'केशवदास' व्यग्यपूर्वक कहते है कि उसकी वाणी झिल्ली से भी बढकर रसीली और महीन है। उसने टिटहरी की रटन को भी निगल लिया है। उसकी वाणी स्यारिनी की वाणी से सवाई है और भूतिनी की बोली से बढकर है। उसकी बोली भैस से भी अच्छी, गधो से भी तेज, और ऊँटनी से भी स्पष्ट है। उसकी बोली ने भेडो की बोली की मर्यादा तोड दी है और नकुली की बोली का अभिमान तोड डाला है। उसकी वाणी बकरी की भाषा से भी सुन्दर है और कौए की काँव काँव, काँव तो उसकी बोली के आगे गल ही गई है। उसकी बोलो के आगे शूकरी सकुचित और कुतिया चुप हो गई है। उल्लू की बोली उसकी बोली के आगे क्या है, उसकी वाणी को सुनकर हथिनी भी मोहित हो जाती है।