१९---सुस्वरवर्णन
दोहा
कलरव, केकी, कोकिला, शुक, सारो, कलहंस।
तंत्री कठनि आदिदै, शुभसुर दुदुभिवस॥४५॥
कबूतर, मोर, कोयल, तोता, मेना, हस, वीणा आदि तार वाले बाजे, दुदुँभी ( एकबाजा ) और बासुरी सुन्दर स्वरवाले माने जाते हैं।
उदाहरण
कवित्त
केकिन की केका सुनि, काके न मथित मन,
मनमथ मनोरथ रथपथ सोहिये।
कोकिला की काकलीन, कलित ललित बाग,
देखत न अनुराग उर अवरोहिये।
कोकन की कारिका, कहत शुक सारिकानि,
'केशौदास' नारिका कुमारिका हू मोहिये।
हंसमाला बोलत ही, तान की उतारि माल,
बोले नन्दलाल सों न ऐसी बाल को हिये॥४६॥
( केशवदास किसी नायिका की ओर से कहते है कि वर्षा मे मोरो की ध्वनि सुनकर किसका मन मथित ( चचल ) नहीं हो जाता। मोरो की वह ध्वनि काम के मनोरथो के रथ के लिए पथ ( मार्ग ) स्वरूप है अर्थात् उसे सुनकर काम वासनाए चलायमान होती है। ( बसत में ) जब कोयलो की बोली से उपवन गूज उठते हैं तब उन्हे देखते ही हृदय मे अनुराग बढ जाता है। उसी ऋतु मे जब ताते और मैना प्रेम की बातें करते है, तब स्त्री तो क्या, कुमारी कन्याएँ तक मोहित हो जाती हैं। ( पर इस शरदऋतु मे ) हसो के बोलते ही अपने मान की माला को उतार कर ( मान छोड़कर ) नन्दलाल ( श्रीकृष्ण ) से न बोले, भला ऐसा हृदय किस स्त्री का होगा?