पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ७९ )

सिह, बराह, गयन्द, गुरु, शेष, सती सब नारि।
गरुड़, वेद माता, पिता, बली अदृष्ट, विचारि॥५३॥

पवन अथवा वायु, पवन के पुत्र (श्री हनुमान जी), परमेश्वर, इन्द्र, कामदेव, भीम, बाल, हली (बलराम), बलि, राजापृथु, काल, सिंह, बाराह, (सूअर), गयन्द (हाथी) गुरु, शेष, सब सती स्त्रिया गरुड, वेद, माता, पिता और अदृष्ट (प्रारब्ध) इन्हे बलिष्ट या बलवान समझिए।

उदाहरण

सवैया

बालि बिध्यो बलिराउ बॅध्यो, कर शूलीके शूल कपाल थली है।
काम जरयो जग, काल परयो बॅदि, शेषधरयो विष हालाहली है।
सिधु मथ्यो, किल काली नथ्यो, कहि केशव इन्द्र कुचालचली है।
रामहूँ की हरी रावण बाम, तिहूँपुर एक अष्टबली है॥५४॥

बालि राजा रामचन्द्र के वाणो से ) बिद्ध हुआ, राजा बलि बाँधा गया, शूलो अर्थात् श्री शकरजी के पास केवल शूल और मुड-माला हो है। काम जला, काल, रावण के बन्दीगृह मे पडा, शेष को हालाहल विष खाना पडा समुद्र मथा गया, काली नाग नाथा गया और ( केशवदास कहते है कि ) इन्द्र मे ( अहल्या के साथ ) कुचाल चली। श्रीराम को स्त्री को रावण ने हरण किया, इसलिए ( इन बलवानो की दशाओ को देखकर यही निश्चय होता है कि ) तीनो लोको में एक अदृष्ट अर्थात् प्रारब्ध या भाग्य ही बलवान है।

२३---सत्य झूठवर्णन

दोहा

केशव चारिहुँ वेदको, मन क्रम वचन विचार।
साचो एक अदृष्ट हरि, झूठो सब संसार॥५५॥