'केशवदास' कहते है कि चारो वेदो को मन, क्रम, वचन मे ध्यान
पूर्वक मनन करके देखा तो अदृष्ट अर्थात् भाग्य और हरि ( भगवान् )
को सच्चा पाया और सारा संसार झूठा प्रतीत हुआ ।
उदाहरण (१)
___ सवैया
हाथी न साथी न घोरे न चेरे न, गाउँ न ठाउँ को नाउँ विलैहै ।
तात न मात न पुत्र न मित्र, न वित्त न अंगऊ संग न रैहै ।
केशव कामको 'राम' बिसारत और निकाम न कामहिं ऐहै।
चेतुरे चेतु अजौ चितु अंतर अंतकलोक अकेलोहि जैहै ॥५६॥
____तेरे साथी ये हाथी-घोडे और नौकर-चाकर नहीं है । न गाँव और
घर ही तेरा साथ देगे, इनका तो नाम तक लुप्त हो जायगा। पिता, माता,
पुत्र मित्र और धन मे से कोई भी तेरे साथ न रहेगा। 'केशवदास'
कहते हैं कि तू काम आनेवाले राम को भूल रहा है और तो सब व्यर्थ है,
तेरे काम न आवेंगे । अब भी मन मे सावधान हो जा, क्योकि यमलोक को
तो तुझे अकेला ही जाना पडेगा।
उदाहरण (२)
अनही ठीक को ठग, जानै ना कुठौर ठौर,
ताही पै ठगावै ठेलि जाही को ठगतु है।
वाके डर तू निडर | डग न डगत डरि,
डर के डरनि डगि डोंगी ज्यों डगतु है।
ऐसे बसोबास ते उदास होय 'केशौदास',
केशौ न भजत कहि काहे को भगतु है।
झूठो है रे झूठो जग राम की दोहाई, काहू,
___साँचे को कियो है वाते साँचो सो लगतु है ॥५॥
तू बेठिकाने का ठग है, ठौर-कुठौर नहीं पहचानता। जिसे हठ-
पूर्वक ठगना चाहता है, उससे स्वय ही ठगा जाता है। अर्थात् जिस
( भजत कर दोहाई, काहगतु है ॥४७॥
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/९३
Jump to navigation
Jump to search
यह पृष्ठ शोधित नही है
