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पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/९६

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ससार को तू ठगना चाहता है, उसके फदे मे स्वय पड जाता है। हे निडर! इसके ( पाप के ) डर से तू डगभर भी विचलित हो कर नहीं डरता और अन्य सासारिक डरो से डोगी की तरह कॉपता रहता है। 'केशवदास' कहते है कि तू इस ससार से उदासीन होकर केशव ( परमात्मा ) को क्यो नहीं भजता और उनसे दूर क्यो भागता है? श्रीराम की सौगन्ध, यह सारा ससार झूठा है परन्तु किसी सच्चे का बनाया हुआ है, इसलिए सच्चा प्रतीत होता है।

२५---मडल वर्णन

केशव कुडल मुद्रिका, बलया, बलय, बखानि।
आलबाल, परिवेष, रवि, सडल मडल जानि॥५८॥

'केशवदास' कहते है कि कुण्डल ( कान का बाला ), मुद्रिका अगूठी), बलया ( चूडी ), बलय ( ककण या कडा ), आल बाल (थाला , परिवेष सूर्य तथा चन्द्रमा के चारो ओर प्रकाशयुक्त घेरा ) और सूर्य मडल को मडलाकार समझना चाहिए।

उदाहरण

कवित्त

मणिमय आल बाल जलज जलज रवि,
मण्डल मे जैसे मति मोहै कवितान की।
जैसे सविशेष परिवेष मे अशेष रेख,
शोभित सुवेष सोम सीमा सुख दानिकी।
जैसे बङ्क लोचनि कलित कर ककननि,
बलित ललित दुति प्रगट प्रभानि की।
'केशौदास' ऐसे राजै, रास तै रसिक लाल,
आस-पास मंडली विराजै गोपिकान की॥५९॥

जिस प्रकार मणियो के थाले के बीच कोई पौधा या कमल खडा

हो जिसे देखकर कवियो की प्रतिभा भी मोहित हो जाती है, जिस प्रकार