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पृष्ठ:कवि-रहस्य.djvu/१२

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व्याख्यान का विषय मैंने 'कवि-रहस्य' रक्खा है। क्योंकि कविकृत्य, काव्य, एक ऐसा विषय है जिसके संबंध में जो कुछ चाहे आदमी कह सकता है। वेदान्तियों के 'ब्रह्म' की तरह 'अवाङ्मनसगोचर' होते हुए यह 'सर्वव्यापी सर्वभूतान्तरात्मा' भी है। पर काव्य के प्रसंग में इतना लिखा गया है कि मैंने कुछ नवीन विषय संग्रह करने का विचार किया। दो ग्रन्थ मुझे ऐसे मिल गये जिनके आधार पर मैं कुछ लिखने का साहस कर सका। एक राजशेखरकृत काव्यमीमांसा (जो समस्त रूप में एक विश्वकोष कहा जा सकता है, पर जिसका अभी एक अंश-मात्र उपलब्ध हुआ है) और दूसरा क्षेमेन्द्र-कृत कविकण्ठाभरण। दोनों ग्रन्थ हजार बरस से अधिक पुराने हैं। विषय तो मेरा होगा 'कवियों की शिक्षाप्रणाली', पर इसके संबंध में राजशेखर ने कई नई बातों का उल्लेख किया है, इनका विवरण भी कुछ करना ही होगा। कवियों के प्रसंग में यह कहा जाता है कि 'दि पोएट इज बार्न नाट मेड'। यदि ऐसा है तो यह प्रश्न उठेगा कि यदि जन्मना कवि होते हैं तो फिर कवि की शिक्षा कैसी? पर हमारे देश का सिद्धांत यह रहा है कि यद्यपि कविता का मूल कारण है प्रतिभा, और प्रतिभा पूर्व-जन्म-संस्कार-मूलक ही होती है, तथापि बिना कठिन शिक्षा के, केवल प्रतिभा के सहारे कवि सुकवि क्या कुकवि भी नहीं हो सकता। इसलिए कवित्व-सम्पादन के लिए शिक्षा आवश्यक है। और आगे चलकर यह स्पष्ट होगा कि कवि को वैसा ही 'जैक अव् आल ट्रेड्स' होना पड़ेगा जैसा कि आई॰ सी॰ एस॰ वालों को होना पड़ता है। भेद इतना ही है कि आई॰ सी॰ एस॰ में 'आप्शन' अनेक हैं पर कवि के लिए सभी 'सब्जेक्ट कम्पल्सरी' हैं।

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