सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कवि-रहस्य.djvu/१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।

(१) वर्णों के उच्चारण-स्थान, करण, प्रयत्न इत्यादि के द्वारा जिस शास्त्र से उनके स्वरूप की निष्पत्ति होती है उस शास्त्र को 'शिक्षा' कहते हैं। इसके आदिप्रवर्तक हैं आपिशलि। (२) नाना वेदशाखाओं में पाये हुए मन्त्रों के विनियोग जिन सूत्रों से बतलाये जाते हैं उन्हें 'कल्प' कहते हैं। इसे 'यजुर्विद्या' भी कहते हैं। (३) शब्दों के 'अन्वाख्यान' अर्थात् विवरण को 'व्याकरण' कहते हैं। (४) शब्दों के 'निर्वचन' अर्थ निरूपण को 'निरुक्त' कहते हैं। (५) छन्दों का निरूपण जिस शास्त्र से होता है वह 'छन्दोविचिति' है। (६) ग्रहों के गणित का नाम है 'ज्योतिष'। 'अलंकार' किसे कहते हैं सो आगे बतलाया जायगा। ये हुए 'अपौरुषेय' शास्त्र।

'पौरुषेय' शास्त्र चार हैं, (१) पुराण, (२) आन्वीक्षिकी, (३) मीमांसा, (४) स्मृतितन्त्र। इनमें (१) पुराण उन ग्रन्थों का नाम है जिनमें वैदिक 'आख्यान' कथाओं का संग्रह है। पुराण का लक्षण यों है—

सर्गश्च प्रतिसंहारः कल्पो मन्वन्तराणि वंशविधिः ।
जगतो यत्र निबद्धं तद् विज्ञेयम्पुराणमिति ॥

अर्थात् 'उसको पुराण समझना जिसमें सृष्टि, प्रलय, कल्प (युगादि), मन्वन्तर, राजाओं के वंश वर्णित हों'। इतिहास भी पुराण के अन्तर्गत है—ऐसा कुछ लोगों का सिद्धांत है। इतिहास के दो प्रभेद हैं—'परिकृति', 'पुराकल्प'। इन दोनों का भेद यों है—

परिक्रिया पुराकल्प इतिहासगतिर्द्विधा ।
स्यादेकनायका पूर्वा द्वितीया बहुनायका ॥

[आज-कल पण्डितों में पूर्वमीमांसासूत्र ६।७।२६ के अनुसार 'परिक्रिया' की जगह 'परकृति' नाम प्रचलित है।] जिस इतिहास में एक ही प्रधान पुरुष नायक हो उसे 'परिक्रिया' कहते हैं। जैसे रामायण—इसके नायक एक श्रीराम हैं। जिसमें अनेक नायक हों उसे 'पुराकल्प' कहते हैं—जैसे महाभारत। इसमें युधिष्ठिर, अर्जुन, दुर्योधन, भीष्म कई पुरुष नायक कहे जा सकते हैं। मीमांसा—सत्र के अनुसार किसी पुरुष-विशेष के चरित्र के वर्णन को 'परकृति' और

-८-