पुरुषनामोल्लेख के बिना ‘किसी समय में ऐसा हुआ’ ऐसे आख्यान को ‘पुराकल्प’ कहते हैं।
२. ‘आन्वीक्षिकी’––तर्कशास्त्र ।
३. वैदिक वाक्यों की १,००० न्यायों द्वारा विवेचना जिसमें की जाती है, उस शास्त्र को ‘मीमांसा’ है। इसके दो भाग है––विधि-विवेचनी (जिसे हम लोग ‘पूर्वमीमांमा’ के नाम से जानते हैं) और ब्रह्म-निदर्शनो (जिसे हम लोग ‘ब्रह्ममीमांसा’ या ‘वेदान्त’ कहते है) । यद्यपि १,००० के लगभग ‘न्याय’ वा अधिकरण केवल पूर्वमीमांसा में है ।
४. स्मतियाँ १८ है । इनमें वेद में कही हई बातों का ‘स्मरण’ है——अर्थात् वैदिक उपदेशों को स्मरण करके ऋषियो ने इन ग्रन्थों को लिखा है——इसी से ये ‘स्मति’ कहलाते हैं ।
इन्हीं दोनों (पौरुषेय तथा अपौरुषेय) ‘शास्त्र’ के १४ भेद है--वेद, ६ वेदांग, पुराण, आन्वीक्षिकी, मीमांसा, स्मृति । इन्हीं को १४ ‘विद्यास्थान’ कहा है––
पुराणन्यायमीमांसाधर्मशास्त्रांगमिश्रिताः ।
वेदाः स्थानानि विद्यानां धर्मस्य च चतुर्दश ।
[इसमें न्याय = आन्वीक्षिकी; धर्मशास्त्र = स्मृति]
तीनों लोक के सभी विषय इन १४ विद्यास्थानों के अन्तर्गत हैं ।
‘शास्त्र’ के सभी विद्यास्थानों का एक-मात्र आधार ‘काव्य’ है–– जो ‘वाङ्मय’ का द्वितीय प्रभेद है। काव्य को ऐसा मानने का कारण यह है कि यह गद्यपद्यमय है, कविरचित है, और हितोपदेशक है । यह ‘काव्य’ शास्त्रों का अनुसरण करता है ।
कुछ लोगों का कहना है कि विद्यास्थान १८ हैं । पूर्वोक्त १४ और उनके अतिरिक्त––१५ वार्ता, १६ कामसूत्र, १७ शिल्पशास्त्र, १८ दण्डनीति । (वार्ता = वाणिज्य-कृषिविद्या, दण्डनीति = राजतन्त्र ) । आन्वीक्षिकी, त्रयी, वार्ता, दण्डनीति––ये चारों ‘विद्या’ कहलाती हैं ।