सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कवि-रहस्य.djvu/२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

प्रतिभा दो प्रकार की मानी गई है––‘कारयित्री’ तथा ‘भावयित्री’ ।

जिस ‘प्रतिभा’ से कवि काव्य करता है वह है ‘कारयित्री’––काव्य करानेवाली । और जिस प्रतिभा से लोग काव्य का आस्वादन करते हैं वह है ‘भावयित्री’--बोध करानेवाली । कारयित्री प्रतिभा तीन तरह की है--सहजा, आहार्या, औपदेशिकी । पूर्व जन्म के संस्कार से जो प्राप्त है सो ‘सहजा’ स्वाभाविकी है । इस जन्म के संस्कार से जो प्राप्त है सो ‘आहार्या’, अर्जिता है । मन्त्र, शास्त्र, आदि के उपदेश से जो प्राप्त है सो‘औपदेशिकी’ उपदेशप्राप्त है । अर्थात् इस जन्म में किञ्चिन्मात्र संस्कार से जो प्रतिभा उद्भूत होती है उसे ‘सहजा’ कहते हैं । यह लगभग पूर्णरूप से पूर्वजन्मसंस्कारद्वारा पुरुष में वर्तमान रहती है, केवल किञ्चिन्-मात्र उद्बोधक की आवश्यकता रहती है । जैसे बैटरी में वैद्युत अग्नि पूर्ण रूप से वर्तमान है--केवल एक धुंडी दबाने ही से पूरी तौर से उद्भूत हो जाता है । जिस प्रतिभा के उद्भुत होने में इस जन्म में अधिक परिश्रम की अपेक्षा हो उसे ‘आहार्या’ कहते हैं--जैसे राखी के ढेर में कहीं एक चिनगारी आग की पड़ी है--उसको प्रज्वलित करने और उसे काम के योग्य बनाने में बड़े परिश्रम की अपेक्षा होती है । और औपदेशिकी प्रतिभा वह है जिसका अंकुर भी पूर्वजन्म सम्पादित नहीं है--इसी जन्म के उपदेश और परिश्रम से जो संस्कार उत्पन्न होता है उसी से यह प्रतिभा उद्भूत होती है--जैसे जहाँ आग का लेश भी नहीं है बड़े परिश्रम से लकड़ी के टकड़ों को रगड़कर अग्निकण उत्पन्न करके आग जलाई जाती है ।

इन तीन तरह की प्रतिभावाले कवि भी तीन तरह के होते हैं-- जिनका नाम है ‘सारस्वत’, ‘आभ्यासिक’, ‘औपदेशिक’ । जन्मान्तरीय संस्कार से जिसकी सरस्वती प्रवृत्त हुई है वह बुद्धिमान् ‘सारस्वत’ कवि है । इसी जन्म के अभ्यास से जिसकी सरस्वती उद्भासित हुई है वह आहार्यबुद्धि ‘आभ्यासिक’ कवि है । जिसकी वाक्यरचना केवल उप-देश के सहारे होती है वह दुर्बुद्धि ‘औपदेशिक’ कवि है । कुछ लोगों का सिद्धांत है कि सारस्वत और आभ्यासिक कवि को शास्त्राभ्यास के पीछे नहीं पड़ना चाहिए । पर यह सिद्धांत ठीक नहीं है । क्योंकि एक ही कार्य

– २३ –