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पृष्ठ:कवि-रहस्य.djvu/३०

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के लिए यदि दो उपाय किये जायँ तो कार्य द्विगुण अच्छा होता है । किसी प्रकार का कवि हो जिसमें उत्कर्ष है वही श्रेष्ठ है । और उत्कर्ष एक गुण से नहीं होता--अनेक गुणों के सन्निपातों से होता है । जैसे——

(१) बुद्धिमत्त्वं च--(२) काव्यांगविद्यास्वभ्यासकर्म च ।

(३) कवेश्चोपनिषच्छक्तिस्त्रयमेकत्र दुर्लभम् ॥

अर्थात्--बुद्धिमत्ता--कव्यांगविद्या का अभ्यास--कवि का असल रहस्य शक्ति--ये तीनों एकत्र दुर्लभ हैं । काव्यप्रकाश में ये तीन कहे हैं--

(१) शक्ति :--(२) काव्यशास्त्राद्यवेक्षणात् निपुणता (३) काव्यज्ञशिक्षया अभ्यासः ।

तीनों प्रकार के कवियों में एक प्रकार का और भेद बतलाया है——

एकस्य तिष्ठति कवेगृह एव काव्य-

मन्यस्य गच्छति सुहृद्भवनानि यावत् ।

न्यस्याविदग्धवदनेषु पदानि शश्वत्

कस्यापि संचरति विश्वकुतूहलीव ॥

अर्थात् सबसे न्यून दरजे के कवि का काव्य उसके घर ही में रहता है । मध्यम श्रेणी के कवि का काव्य उसके मित्रों के घर तक पहुँचता है । उत्तम कवि का काव्य संसार भर में फैल जाता है । यह हुई ‘कारयित्री’ प्रतिभा ।

‘भावयित्री प्रतिभा’ वह है जो कवि के परिश्रम और अभिप्राय का बोध करावे । इसी से कवि का व्यापार सफल होता है । यदि समझनेवाला न आ तो काव्य ही क्या, और काव्य समझने के लिए भी लगभग उतनी ही प्रतिभा की आवश्यकता है जितनी काव्य करने के लिए । कुछ लोगों का कहना है कि जो ही भावक है वही कवि भी है । पर यह ठीक नहीं । दोनों का स्वरूप भी भिन्न है विषय भी भिन्न है । इस पर यह श्लोक है--

कश्चिद्वाचं रचयितुमलं, श्रोतुमेवापरस्तं


कल्याणी ते मतिरुभयथा विस्मयं नस्तनोति ।

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