पृष्ठ:कवि-रहस्य.djvu/५०

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‘लक्ष्मी विष्णु को छोड़कर जो तुम्हारे पास आई--इसमें कुछ आश्चर्य नहीं । विष्णु मन्दर पर्वत से आये (मन्द रत हैं) और तुम समर (लड़ाई) से आये (सम-रत) हो ।’

(१०) लौकिक——

पिबन्त्यास्वाद्य मरिचताम्बूलविशदैमुंखैः ।

प्रियाधरावदंशानि मधूनि द्रविडांगना:॥

‘मिर्च और पान से स्वच्छ मुख द्वारा द्रविड स्त्रियाँ अपने प्रियतम के अधरों में लगा हुआ मद्य पीती हैं ।’

(११) कवि-कल्पित कथा के आधार पर--

अस्ति चित्रशिखो नाम खङ्विद्याधराधिपः ।

दक्षिणे मलयोत्संगे रत्नवत्याः पुरः पतिः ॥

तस्य रत्नाकरसुता श्रियो देव्याः सहोदरी ।

स्वयंवरविधावासीत् कलत्रं चित्रसुन्दरी ॥

‘मलय के दक्षिण भाग में रत्नवती नगर में खङ्गविद्याधराधिप राजा हैं । रत्नाकर की लड़की लक्ष्मीदेवी की सहोदर बहिन चित्र--सुन्दरी नाम की स्वयंवर विधान से उनकी पत्नी हुई ।’

(१२) प्रकीर्ण--धनुर्वेद के आधार पर--

स दक्षिणापांग निविष्टमुष्टि नतांसमाकुञ्चितसत्यपादम्।

ददर्श · चक्रीकृतचारचापं प्रहर्तुमभ्युद्यतमात्मयोनिम् ॥

‘शिवजी ने कामदेव को देखा जिस समय कामदेव दक्षिणनेत्र में मुष्टि लगाये कन्धे को झुकाये बायें पैर को मोड़े धनुष खींचे उनको बाण मारने को उद्यत थे ।’

(१३) उचित संयोग के आधार पर--

पाण्डपोऽयमंसापितलम्बहारः क्लुप्तांगरागो हरिचन्दनेन ।

आभाति बालातपरक्तसानुः सनिर्झरोद्गार इवाद्विराजः॥

‘पांडय राजा के कन्धे पर (लाल) माला पड़ी है--और शरीर में

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