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पृष्ठ:कवि-रहस्य.djvu/५६

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(५) निबन्ध-आख्यानकवान्--

सखि सखि ललित समय लखु भोर--

नागर नागरि रैनि रंग करि सयन करै पिअ कोर ।

धीवर अंक मयंक तरणि चढ़ि शशिकर जाल पसार

उडुगण मीन बझाय चलल जनि गगनपयोनिधिपार ।

काव्य सभी भाषाओं में हो सकता है । भाव चाहिए । कोई एक हीभाषा में काव्य कर सकता है--कोई अनेक भाषाओं में--संस्कृत, प्राकृत अपभ्रंश, पैशाची इत्यादि ।

एकोऽर्थः संस्कृतोक्त्या स सुकविरचनः प्राकृतेनापरोऽस्मिन्

अन्योऽपन्भ्रशगीर्भिः किमपरमपरो भूतभाषाक्रमेण ।

द्वित्राभिः कोऽपि वाग्भिर्भवति चतसृभिः किञ्च कश्चिद् विवेक्तुं

यस्येत्थं धीः प्रपन्ना स्नपयति सुकवेस्तम्य कीर्तिर्जगन्ति ॥


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