पृष्ठ:कवि-रहस्य.djvu/६३

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में परिपार्श्वक के द्वारा यह प्रश्न है कि ‘ये कवि तार्किक होते हुए भी कवि हैं यह आश्चर्य है’ । इस पर सुत्रधार कहता है--इसमें आश्चर्य क्या है--

येषां कोमलकाव्यकौशलकलालीलावती भारती

तेषां कर्कशतर्कवकरचनोद्गारेऽपि किं हीयते ।

यैः कान्ताकुचकुड्मले कररुहाः सानन्दमारोऽपिता

स्तैः किं मतकरीन्द्रकुम्भशिखरे नारोपणीयाः शराः॥

तात्पर्य यह है कि ‘जो कवि कोमल काव्य-कला में निपुण है सो क्या कठिन तर्क में निपुण नहीं हो सकता। जो पुरुष अपने हाथों से कोमल केलि करता है सो क्या उन्हीं हाथों से वाण नहीं चला सकता’ । इन्हीं जयदेव की एक और गौरवोक्ति मिथिला में प्रसिद्ध है--

तर्केषु कर्कशधियो वयमेव नान्यः ।

काव्यष कोमलधियो वयमेव नान्यः ॥

कान्तासुरंजितधियो वयमेव नान्यः ।

कृष्णे समर्पितधियो वयमेव नान्यः ॥



(२)

क्षेमेन्द्र ने कवित्व-शिक्षा के विषय में एक छोटा सा ग्रन्थ लिख डाला है जिसका नाम ‘कविकण्ठाभरण’ है । इसके अनुसार शिक्षा की पाँच कक्षायें होती हैं--(१) ‘अकवेः कवित्वाप्तिः’ कवित्व शक्ति का यत् किञ्चित सम्पादन । (२) ‘शिक्षा प्राप्तगिरः कवेः’, पदरचनाशक्तिसम्पादन करने के बाद उसकी पुष्टि करना । (३) ‘चमत्कृतिश्च शिक्षाप्तौ’--कविता-चमत्कार । (४) ‘गुणदोषोद्गतिः’ काव्य के गुण-दोष का परिज्ञान ।(५) ‘परिचयप्राप्ति’--शास्त्रों का परिचय ।

(१) अकवि की कवित्वप्राप्ति के लिए दो तरह के उपाय हैं--‘दिव्य’--यथा सरस्वती देवी की पूजा, मन्त्र, जप इत्यादि--तथा ‘पौरुष’ । पौरुष प्रयत्न के संबंध में तीन तरह के शिष्य होते हैं । ‘अल्पप्रयत्नसाध्य’--थोड़े प्रयत्न से जो सीख जाय ‘कृच्छ्रसाध्य’--जिसकी शिक्षा के लिए कठिन परिश्रम की अपेक्षा है ।‘असाध्य’--जिसकी शिक्षा हो ही न सके ।

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