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पृष्ठ:कवि-रहस्य.djvu/६४

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अल्पप्रयत्नसाध्य शिष्य के लिए ये उपाय हैं--

(क) साहित्यवेत्ताओं के मुख से विद्योपार्जन करना । शुष्क तार्किक या शुष्क वैयाकरण को गुरु नहीं बनाना । ऐसे गुरुओं के पास पढ़ने से सूक्ति का विकास नहीं होता ।

[शुष्क तार्किक या शुष्क वैयाकरण के प्रसंग कई कहानियाँ प्रसिद्ध हैं । किसी पंडित के पास एक तार्किक और एक वैयाकरण पढ़ता था । दोनों की बुद्धि जाँचने के लिए एक दिन घर में जाकर लेट गये अपनी कन्या से कहा--यदि विद्यार्थी आवे तो कह देना ‘भट्टस्य कट्यां शरटः प्रविष्टः’ (भट्टजी के कमर में छिपकली पैठ गई है) । व्याकरण का विद्यार्थी आया । कन्या की बात सुनकर वाक्य को व्याकरण से शुद्ध पाकर चला गया । न्यायशास्त्र का विद्यार्थी आया--उससे भी कन्या ने वही बात कही । पर उसने विचार करके देखा तो समझ गया कि यह तो असंभव है कि मनुष्य की कमर में छिपकली घुस जाय। गुरुजी बाहर निकले और कहा कि न्याय-शास्त्र ही बुद्धि को परिष्कृत करती है निरा व्याकरण नहीं । एक दिन दोनों विद्यार्थी कहीं जा रहे थे । रास्ते में शाम हो गई--एक वृक्ष के नीचे डेरा डालकर आग जलाकर एक हंडिये में चावल पानी चढ़ा दिया । वैया-करण रसोई बनाने लगा। नैयायिक बाजार से घृत लाने गया । जब चावल आधा पकने पर हुए तो ‘टुभ् टुभ्’ शब्द होने लगा । वैयाकरण ने धातु पाठ का पारायण करके विचारा कि ‘टुभ्’ धातु तो कहीं नहीं है--यह हंडिया अशुद्ध बोल रही है । बस ढेर सा बालू उसमें डाल दिया--बोली बन्द हो गई--वैयाकरण प्रसन्न हो गये--अशुद्ध शब्दोच्चारण अब नहीं होता । उधर नैयायिक महाशय एक दोना में घृत लेकर आ रहे थे तो उनके मन में यह तर्क उठा कि--इन दोनों वस्तुओं में कौन आधार है, कौन आधेय--अर्थात् घृत में दोना है या दोने में घृत । इस बात की परीक्षा करने के लिए उन्होंने दोने को उलट दिया । घृत ज़मीन पर गिर पड़ा--आप बड़े प्रसन्न हुए कि शंका का समाधान हो गया--दोना ही घृत का आधार था । डेरे पर पहुँचे तो हंडिया में बालू भरा पाया । पूछने पर वैयाकरण ने जवाब दिया-- “यह पात्र अशुद्ध बोल रहा था इससे मैंने इसका मुंह बन्द कर दिया–

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