जिसने ऐसी बातें कहीं जो और किसी ने कभी नहीं कही । पहिले चार ‘लौकिक’ हैं, पाँचवाँ ‘अलौकिक’। चारों लौकिक कवि के नाम हैं, ‘भ्रामक’ ‘चुम्बक’, ‘कर्षक’, ‘द्रावक’ । अलौकिक का नाम है ‘चिन्ता-मणि’। (१) पुरानी बात को भी जो नई समझकर प्रदर्शित करे वह ‘भ्रामक कवि’ है । (२) जो दूसरे की कही बात को थोड़ा स्पर्श करती हुई अपनी उक्तियाँ कहे सो ‘चुम्बक’ है । (३) दूसरे की उक्ति को खींच कर जो अपने प्रबन्ध में किसी लेख के द्वारा घुसेड़े सो ‘कर्षक’ है । (४) जो दूसरी की उक्ति के मूलार्थ का सार लेक अपनी उक्ति में इस प्रकार कहे कि प्राचीन रूप उसका जाना न जाय सो ‘द्रावक’ है । (५) जिसके भाव रस उत्पन्न करनेवाले हैं और जिस भाव का ज्ञान किसी भी प्राचीन कवि को नहीं हुआ--उसे ‘चिन्तामणि कवि’ कहते हैं ।
जिसके भाव ‘अयोनि’ हैं अर्थात् बिलकुल नये ऐसे कवि के तीन प्रभेद हैं--लौकिक, अलौकिक, लौकिक-अलौकिक--मिश्रित ।
भ्रामक, चुम्बक, कर्षक, द्रावक इन चारों के प्रत्येक आठ आठ अवा-न्तर भेद हैं । इससे कुल संख्या ३२ होती है। ये आठ अवान्तर भेद ये हैं ।
(१) पुरानी उक्ति के दो अंशों के पौर्वापर्य को बदल देना--इसे ‘व्यस्तक’ कहते हैं ।
(२) पुरानी उक्ति लम्बी चौड़ी है--उसमें से कुछ अंश ले लेना-- इसे ‘खण्ड’ कहते हैं ।
(३) पुरानी उक्ति संक्षिप्त है उसी को विस्तृत रूप में कहना- इसे ‘तैलबिन्दु’ कहते हैं । इसका उदाहरण है--
(प्राचीन)--
यस्य तन्त्रभराकान्त्या पातालतलगामिनी।
महावराहदंष्ट्राया भूयः सस्मार मेदिनी॥
(नवीन)--
यत्तन्त्राक्रान्तिमन्जत्पृथुलमणिशिलाशल्यवेल्लत्फणान्ते
क्लान्ते पत्यावहीनां चलवचलमहास्तम्भसम्भारभीमा।