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पृष्ठ:कवि-रहस्य.djvu/८०

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सस्मार स्फारचन्द्रघुतिपुनरवनिस्तद्धिरण्याक्षवक्ष:-


स्थूलास्थिश्रेणिशाणानिकषणसितमप्याशु दंष्ट्राग्रमुग्रम् ॥

(४) पुरानी उक्ति जिस भाषा में है उसी को दूसरी भाषा में कहना-इसे ‘नटनेपथ्य’ कहते हैं ।

(५) केवल छन्द बदल देना——इसे ‘छन्दोविनिमय’ कहते हैं ।

(६) पुरानी उक्ति में जो किसी वृत्तांत का कारण कहा गया है उस वृत्तांत का दूसरा कारण कहना——इसे-‘हेतुव्यत्यय’ कहते हैं ।

(७) देखी हुई वस्तु को अन्यत्र ले जाना——यह ‘संक्रान्तक’ है ।

(८) दोनों वाक्यार्थों का उपादान है ‘सम्पुट’। इस तरह के परोक्ति का अपहरण कवि को ‘अकवि’ बना देता है । इससे यह सर्वथा त्याज्य है । ये सब प्रभेद ‘प्रतिबिम्बकल्प’ के हैं । ‘आलेख्यप्रख्य’ रूप अपहरण के निम्नलिखित भेद हैं——

(१) ‘समक्रम’——प्राचीन उक्ति के सदृश रचना करना ।

(२) ‘विभूषणमोश’——प्राचीन उक्ति में जो अलंकार समेत है उसे अलंकार-रहित बनाकर कहना ।

(३) ‘व्युत्क्रम’——प्राचीन उक्ति में जिस क्रम से बातें कहीं हैं उनको क्रम बदल कर कहना ।

(४) ‘विशेषोक्ति’--प्राचीन उक्ति में जो सामान्य रूप से कहा है उसे विशेष रूप से कहना ।

(५) ‘उत्तंस’——जो उपसर्जनभाव से कहा है उसे प्रधानभाव से कहना ।

(६) ‘नटनेपथ्य’——बात वही कहना पर थोड़ा बदलकर ।

(७) ‘एकपरिकार्य’——जो प्राचीन उक्ति में कारण-सामग्री कहा है सो ही सामग्री कहना पर काय दूसरा बदल देना ।

(८) ‘प्रत्यापत्ति’——जो विकृतिरूप से कहा है उसे प्रकृतिरूप में कहना ।

ये मार्ग ऐसे हैं जिनका अवलम्बन अनुचित नहीं है ।

‘तुल्यदेहितुल्य’ अर्थहरण के भेद यों हैं ।

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