(१) ‘विषयपरिवर्त’——पहले कहे विषय में विषयान्तर मिलाकर उसका स्वरूपान्तर कर देना ।
(२) ‘द्वन्द्वविच्छित्ति’——जिस विषय का दो रूप वर्णित पहले का है उसका एक ही रूप लेकर वर्णन करना ।
(३) ‘रत्नमाला’ प्राचीन अर्थों का अर्थांतर करना ।
(४) ‘संख्योल्लेख’——एक ही विषय की पूर्वोक्त संख्या को बदल देना ।
(५) ‘चूलिका’——पहले जो सम कहा गया-उसे विषम कहना । या पहले जो विषम कहा गया उसे सम कहना।
(६) 'विधानापहार'-निषेध को विधि रूप में कहना।
(७) ‘माणिक्यपुंज’——बहुत अर्थों का एकत्र उपसंहार ।
(८) ‘कन्द’——कन्द (समष्टि) रूप अर्थ को कन्दल (व्यष्टि) रूप म कहना । इस मार्ग का भी अवलम्बन उचित है ।
‘परपुरप्रवेश’ रूप अर्थापहरण के भेद यों हैं ।
(१) ‘हुडयुद्ध’——एक प्रकार से उपनिबद्ध वस्तु को युक्ति-पूर्वक बदल देना । उदाहरण——
(प्राचीन)——
कथमसौ न भजत्यशरीरतां हतविवेकपदो हतमन्मथः।
प्रहरतः कदलीदलकोमले भवति यस्य दया न वधूजने ॥
कोमल स्त्री शरीर पर प्रहार करने के कारण यहाँ मन्मथ की निर्वि- वेकता-मूलक निन्दा है ।
(नवीन)——
कथमसौ मदनो न नमस्यातां स्थितविवेकपदो मकरध्वजः ।
मृगवृशां कदलीललितं वपुर्यवभिहन्ति शरैः कुसुमोद्भवः ।
स्त्रियों के कोमल शरीर पर कोमल फूलरूपी ही शर के प्रहार करने में मन्मथ अपनी विवेकिता सूचित करता है——यह उसकी प्रशंसा ।