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पृष्ठ:कवि-रहस्य.djvu/८६

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समस्त जगत् को--और जगत् के भाग को भी--‘देश’ कहते हैं । ‘जगत्’ किसे कहते हैं--इसके प्रसंग में नाना मत हैं--(१) स्वर्ग और पृथिवी दोनों मिलकर ‘जगत्’ है । (२) स्वर्ग एक ‘जगत्’ है पृथिवी दूसरा ‘जगत्’ । (३) जगत् तीन हैं स्वर्ग, मर्त्य, पाताल । इन्हीं के नाम ‘भू’, ‘भुव’, ‘स्व’, भी हैं । (४) जगत् सात हैं, भू, भुव, स्व, मह, जन, तप, सत्य । (५) ये सात और ये हो सात वायुमंडल के--यों १४ ‘जगत्’ हैं । (६) ये १४ सात पातालों के साथ २१ ‘जगत्’ हैं ।

इनमें पृथिवी ‘भू’ लोक है । इसमें सात महाद्वीप हैं, सबके बीच में (१) जम्बूद्वोप, उसको घेरे हुए क्रम से--(२) प्लक्ष, (३) शाल्मल, (४) कुश, (५) क्रौंच, (६) शाक, (७) पुष्कर ।

समुद्र ७ हैं--(१) लवण, (२) रस, (३) सुरोदक, (४) घृत, (५) दधि, (६) जल, (७) दुग्ध । कुछ लोगों का सिद्धांत है कि लवण ही एकमात्र समुद्र है । और लोगों के मत से ३, किसी के मत से ४ ।

जम्बूद्वीप के मध्य में मेरु-पर्वत है--यह सब औषधियों का निधान है--यहीं सब देवता रहते हैं । यही मेरु पहला वर्षपर्वत है । मेरु की चारों ओर इलावृतवर्ष है । मेरु के उत्तर में नील, श्वेत, शृंगवान् ये तीन वर्षगिरि हैं । इनसे क्रमशः सम्बद्ध तीन वर्ष' हैं रम्यक, हिरण्मय, उत्तरकुरु । मेरु के दक्षिण में भी तीन वर्षगिरि है-निषध, हेमकूट, हिमवान् । इनसे क्रमशः संबद्ध तीन वर्ष हैं-हरि, किम्पुरुष, भारत । यह हमारा देश भारतवर्ष है । इसके ९ प्रदेश हैं--इन्द्रद्वीप, कसेरुमान्, ताम्रपर्ण, गभस्तिमान्, नागद्वीप, सौम्य, गन्धर्व, वरुण, कुमारीद्वीप ।

दक्षिण समुद्र से लेकर हिमालय तक १,००० योजन होता है । इसे जो जीते वह ‘सम्राट्' कहलायेगा । कुमारीपुर से विन्दुसरपर्यत १,००० योजन को जीतने से ‘चक्रवर्ती’ कहलायेगा ।

कुमारीद्वीप के सात पर्वत है--विन्ध्य, पारियात्र, शुक्तिमान्, ऋक्ष, महेन्द्र, सहय, मलय ।

पूर्व समुद्र और पश्चिम समुद्र के बीच में, हिमालय--विन्ध्य के बीच में, आर्यावर्त है ।

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