पृष्ठ:कवि-रहस्य.djvu/८७

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इसी देश में चार वर्णों की और चार आश्रमों की व्यवस्था है, तन्मूलक ही सदाचार भी । प्रायः यहाँ के जो व्यवहार हैं वही कवियों का होना चाहिए ।

काशी के पूर्व का भाग ‘पूर्व देश’ है । इसमें इतने जनपद हैं--अंग, कलिंग, कोसल (?), तोराल, मगध, मुद्गर, विदेह, नेपाल, पुण्ड्र, प्राग्-ज्योतिष, ताम्रलिप्तक, मलद, मल्लवर्तक, सुह्म, ब्रह्मोत्तर इत्यादि । [ यहाँ 'कोसल' का नाम लेखप्रमाद से अन्तर्गत हो गया है, किसी भी प्रमाण के अनुसार कोसल देश काशी के पूर्व में नहीं माना गया है । इन नामों में कुछ ऐसे हैं जिनके नाम आजकल भी परिचित मालूम होते हैं परन्तु इसी के बल से दोनों को एक मान लेने में भ्रम की सम्भावना है । जैसे मुद्गर (मुंगेर), ताम्रलिप्तक (तामलूक), मलद (मालदह), मल्लवर्तक (मालवा,) ब्रह्मोतर (ब्रह्मपुत्रप्रान्त)।]--इस प्रांत के पर्वत हैं--बृहद्गृह, लोहितगिरि, चकोर, दर्दुर, नैपाल, कामरूप, इत्यादि । शोण, लौहित्य दो नद हैं । गंगा, करतोया, कपिशा इत्यादि नदियाँ । लवली, ग्रन्थिपर्णक, अगरु, द्राक्षा, कस्तूरिका यहाँ उत्पन्न होते हैं ।

माहिष्मती (मंडला) से दक्षिण का देश दक्षिणापथ (दकन) है । इसके अन्तर्गत ये जनपद हैं--महाराष्ट्र, माहिषक, अश्मक, विदर्भ, कुन्तल, क्रथकैशिक, सूपरिक, कांची, केरल, कावेर, मुरल, वानवासक, सिंहल, चोल, दंडक, पांड्य, पल्लव, गांग, नाशिक्य, कोंकण, कोल्लगिरि, वल्लर इत्यादि । यहाँ के पर्वत हैं--विन्ध्य का दक्षिण भाग, महेन्द्र, मलय, मेकल, पाल, मंजर, सहय, श्रीपर्वत इत्यादि । नदियाँ--नर्मदा, तापी, पयोष्णी, गोदावरी, कावेरी, भैमरथी, वेणा, कृष्णवेणा, वञ्जरा, तुंगभद्रा, ताम्रपर्णी, उत्पलावती, रावणगंगा इत्यादि ।

देवसभा के पश्चिम ‘पाश्चात्यदेश’ है । इसके जनपद हैं--देवसभ, सुराष्ट्र, दशेरक, श्रवण, भृगुगच्छ, कच्छीय, आनर्त, अर्बुद, ब्राह्मणवाह, यवन इत्यादि । नदियाँ--सरस्वती, श्वभ्रवती, वार्तध्नी, मही, हिडिम्बा इत्यादि । करीर, पीलु, गुग्गुल, खर्जूर, करभ यहाँ उत्पन्न होते हैं ।

पर्वत यहाँ के-गोवर्धन, गिरनार, देवसम, माल्यशिखर, अर्बुद इत्यादि ।

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