पूर्वदेशवासी ‘श्याम’, दक्षिणदेशवासी ‘कृष्ण’, पश्चिमदेशवासी ‘पांडु’ उत्तरदेशवासी ‘गौर’ । मध्यदेशवासियों में तीनों पाये जाते हैं । यहाँ यह स्मरण रखना चाहिए कि कवियों के व्यवहार में ‘कृष्ण’ और ‘श्याम’ तथा ‘पांडु’ और ‘गौर’ में भेद नहीं किया जाता है ।
यह वर्ण का नियम केवल आपाततः कहा गया है । क्योंकि पूर्व-देश-वासी सभी काले नहीं होते । यहाँ की राजकन्या इत्यादि का वर्ण ‘पांडु’ या ‘गौर’ पाया जाता है । ऐसा ही दक्षिण देश में भी ।
देश-विभाग की तरह काल-विभाग का भी ज्ञान आवश्यक है ।
१५ निमेष की ‘काष्ठा’
३० काष्ठा की ‘कला’
३० कला का ‘मुहर्त’
३० मुहूर्त की ‘अहोरात्र’ (दिन रात)
यह हिसाब चैत्र और आश्विन मास का है (जब रात दिन बराबर होते हैं)। चैत्र के बाद तीन महीने तक प्रतिमास एक मुहूर्त करके दिन की वृद्धि होती है और रात का ह्रास। फिर उसके बाद तीन मास तक प्रतिमास एक मुहूर्त रात की वृद्धि, दिन की हानि होती है । इस तरह आश्विन में जाकर दिन रात बराबर हो जाते हैं। आश्विन के बाद तीन महीने तक प्रतिमास एक मुहुर्त दिन का ह्रास रात की वृद्धि । उसके बाद तीन मास तक रात्रि का ह्रास दिन की वृद्धि । इस तरह चैत्र में फिर रात दिन बराबर हो जाते हैं ।
जितने काल में सूर्य एक राशि से दूसरे राशि में जाता है उतने काल को ‘मास’ कहते हैं । वर्षा ऋतु से छः महीने ‘दक्षिणायन’ (सूर्य दक्षिण की ओर) रहते हैं, और शिशिर ऋतु से छः महीने ‘उत्तरायण’ । दो अयनों का संवत्सर’ (वर्ष)——यह काल का मान ‘सौर’ (सूर्य के अनुसार) कहलाता है । १५ अहोरात्र का ‘पक्ष’ । जिस पक्ष में चन्द्रमंडल प्रतिदिन बढ़ता है उसे ‘शुक्लपक्ष’, जिसमें घटता है उसे ‘कृष्णपक्ष’