नाना शास्त्रों का ज्ञान कवि को आवश्यक होता है । इसके उदाहरण में कुछ पद्य यहाँ उद्धृत किये जाते हैं । जिनसे यह ज्ञात होगा कि यह आव-श्यकता केवल कपोलकल्पित नहीं है, हमारे हिन्दी के भी जो मौलिक कवि होगये हैं उन्हें इन शास्त्रों का अच्छा ज्ञान था और बिना ऐसे ज्ञान के वे ऐसे आदर्श-कवि नहीं होते ; ये उदाहरण केवल दिङमात्रप्रदर्शन के लिए हैं । जितने पद्यों में ऐसे शास्त्र-ज्ञान भासित हैं उन सभों का संग्रह करना असंभव है ।
[इन उदाहरणों के संकलन में मुझे मेरे शिष्य श्रीयुत धीरेन्द्र वर्माजी से बड़ी सहायता मिली है] ।
वैद्यक परिचय
रावन सो राजरोग बाढ़त बिराट उर,
दिन दिन विकल सकलमुखराँक सो ।
नाना उपचार करि हारे सुर सिद्ध मुनि,
होत न बिसोक ओत पावै न मनाक सो।
राम की रजाय तें रसायनी समीरसूनु
उतरि पयोधिपार सोधि सरवाक सो ।
जातुधान बुट, पुटपाट लंक जातरूप,
रतन जनत जारि कियो है मृगांक सो॥
रामायणपरिचय
घूर धरत नित शीश पर, कहु रहीम किहि काज ।
जिह रज मुनिपत्नी तरी सो ढूंढ़त गजराज ॥
जैसी हो भवितव्यता तैसी बुद्धि प्रकास ।
सीता हरिवै तें भयो रावणकूल को नास ॥