सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कवि-रहस्य.djvu/९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

नाना शास्त्रों का ज्ञान कवि को आवश्यक होता है । इसके उदाहरण में कुछ पद्य यहाँ उद्धृत किये जाते हैं । जिनसे यह ज्ञात होगा कि यह आव-श्यकता केवल कपोलकल्पित नहीं है, हमारे हिन्दी के भी जो मौलिक कवि होगये हैं उन्हें इन शास्त्रों का अच्छा ज्ञान था और बिना ऐसे ज्ञान के वे ऐसे आदर्श-कवि नहीं होते ; ये उदाहरण केवल दिङमात्रप्रदर्शन के लिए हैं । जितने पद्यों में ऐसे शास्त्र-ज्ञान भासित हैं उन सभों का संग्रह करना असंभव है ।

[इन उदाहरणों के संकलन में मुझे मेरे शिष्य श्रीयुत धीरेन्द्र वर्माजी से बड़ी सहायता मिली है] ।

वैद्यक परिचय

रावन सो राजरोग बाढ़त बिराट उर,

दिन दिन विकल सकलमुखराँक सो ।

नाना उपचार करि हारे सुर सिद्ध मुनि,

होत न बिसोक ओत पावै न मनाक सो।

राम की रजाय तें रसायनी समीरसूनु

उतरि पयोधिपार सोधि सरवाक सो ।

जातुधान बुट, पुटपाट लंक जातरूप,

रतन जनत जारि कियो है मृगांक सो॥

[तुलसीदास-कवितावली उत्तरकांड २५]
 

रामायणपरिचय

घूर धरत नित शीश पर, कहु रहीम किहि काज ।

जिह रज मुनिपत्नी तरी सो ढूंढ़त गजराज ॥

[रहीम]
 

जैसी हो भवितव्यता तैसी बुद्धि प्रकास ।

सीता हरिवै तें भयो रावणकूल को नास ॥

[वृन्द]
 
– ८६ –