पृष्ठ:कवि-रहस्य.djvu/९३

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भारतपरिचय

जो पुरुषारथ ते कहूँ सम्पति मिलति रहीम ।

पेट लागि बैराटघर तपत रसोई भीम ॥

[रहीम
 

छल बल समै बिचारि कै अरि हनियै अनयास।

कियौ अकेले द्रोनसुत निस पांडव कुलनास ॥

[वृन्द]
 

द्यूतपरिचय

मन तू समझि सोच विचार ।

भक्ति बिन भगवान दुर्लभ कहत निगम पुकार ॥

साध संगति डारि फासा फेरि रसना सारि ।

दाव अबकें पर्यो पूरो उतरि पहिली पार ॥

वाक सत्रे सुनि अठारे पंच ही कों मारि ।

दूर ते तजि तीन काने चमकि चौक बिचार ।।

काम क्रोध जंजाल भूल्यो ठग्यो ठगनी नारि ।

सूर हरि के पद भजन बिन चल्यो दोउ कर झार॥

[सूरदास]
 

वृक्ष, पक्षी इत्यादि परिचय

तरु तालीस तमाल ताल हिंताल मनोहर,

मंजुल बंजुल तिलक लकुच कुल नारिकेलवर ।

एला ललित लवंग संग पुंगीफल सोहैं,

सारी शुक कुल कलित चित्त कोकिल अलि मोहैं।

शुभ राजहंस, कलहंस कुल, नाचत मत्त मयूरगन ।।

अति प्रफुलित फलित सदा रहै केशवदास विचित्र वन ॥ .

[केशवदास——रामचन्द्रिका]
 

ज्योतिषपरिचय

उदित अगस्त पंथ जल सोखा । जिमि लोभहि सोखै संतोषा ॥

[तुलसीदास-मानस]
 
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