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पृष्ठ:कवि-रहस्य.djvu/९८

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कठिन कुठार धार धारिबे की धीरताहि,

बीरता बिदित ताकी देखिए चहतु हौं ।

तुलसी समाज राज तजि सो बिराज आजु,

गाज्यो मृगराज गजराज ज्यों गहतु हौं

छोनी में न छाँड्यो छप्यौ छोनिप को छो ना छोटो,

छोनिप-छपन बाँको विरुद बहतु हौं ।।

[तुलसीदास——कवितावली]
 

(माधुर्य--प्रसाद)

नूपुर कंकन किंकिन करतल मंजुल मुरली

ताल मृदंग उपंग चंग एक सुर जुरली ।

मृदुल मधुर टंकार, ताल झंकार मिली धुनि,

मधुर जंत्र की तार भँवर गुंजार रली पुनि ।

तैसिय मृदुपद पटकनि चटकनि कर तारन की,

लटकनि मटकनि झलकनि कल कुंडल हारन की ।

साँवरे पिय के संग नृतत यों ब्रज की बाला,

जनु घन-मंडल-मंजुल खेलति दामिनिमाला ॥

[नंददास——रासपंचाध्यायी]
 

पद-औचित्य

सीस-मुकुट, कटि काछिनी, कर-मुरली उरमाल ।

इहिं बानक मो मन सदा, बसौ बिहारीलाल ॥

[बिहारी-सतसई]
 

इस वर्णन के लिए कृष्ण के नामों में ‘बिहारीलाल’ नाम सब से अधिक उपयुक्त है ।

करौ कुबत जगु, कुटिलता तजों न दीन दयाल।

दुखी होहुगे सरल हिय बसत, त्रिभंगीलाल ।।

बिहारी-सतसई]
 
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