सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कहानी खत्म हो गई.djvu/१७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१७४
प्यार
 

'लौट चलने को घर से नहीं निकली हूं। और पास आ जा। किनारा दूर नहीं है। वह सामने किश्ती है। किश्ती पर चिराग जल रहा है।'

'लेकिन यह पैरों की आहट कैसी है? कोई आ रहा है!'

'जंगल है। सियार-कुत्ते रात में घूमते ही हैं।'

'बड़ी खौफनाक रात है बीबी। कोई हरबा-हथियार भी साथ नहीं लिया। बड़ी गलती की।

'सबसे बड़ा हथियार है मेरे पास-तेज़ ज़हर। आनन-फानन तमाम डर-खतरों को दूर करने की इसमें ताकत है।'

'यह तो अपनी ही जान खोना हुआ। दुश्मन का इससे क्या बिगड़ेगा?'

'मैं यतीम बेवा औरत दुश्मन का क्या बिगाड़ सकती हूं? फिर बिगाड़-सुधार जो होना था, हो चुका। किस्मत में जो लिखा है, वही तो होगा। फिर दुश्मन पर गुस्सा क्या, किसी से शिकायत क्या?'

भय से मरजाना की चीख निकल गई। उसने कहा-बीबी, वह क्या है?

काली-काली भूत-सी दो मूर्तियां अंधकार में आगे बढ़ रही थीं। देखकर बाला रुक गई। बच्ची को उसने ज़ोर से छाती पर कस लिया। पास आने पर बाला ने देखा-आनेवाले दो पुरुष थे। दोनों उच्च सैनिक पदाधिकारी प्रतीत होते थे। उनकी कीमती पोशाक पर शस्त्र अंधेरे में भी चमक रहे थे।

जो आगे था, उसीने रोब-भरे स्वर में कहा-आप लोग कौन हैं? इधर से किसीने कोई जवाब नहीं दिया। उस पुरुष ने फिर वैसे ही स्वर में कहा-आप जो कोई भी हों; जहां हैं, वहीं खड़े रहें।

उसने अपने साथी को मशाल जलाने को कहा। साथी के एक हाथ में नंगी तलवार थी, और दूसरे में मशाल। तलवार म्यान में करके उसने मशाल जला दी। मशाल के पीले, कांपते प्रकाश में उस व्यक्ति ने देखा, दो स्त्रियां हैं। आगे एक अनिंद्य सुन्दरी बाला है।

वह दो कदम आगे बढ़ पाया।

बाला ने जलद-गम्भीर स्वर में कहा-तुम लोग कौन हो? और किसके हुक्म से तुमने हमारे बाग में घुस आने की जुर्रत की?'

'मुआफ कीजिए! मैं आज्ञाकारी सेवक हूं।'