तब बेगमात के कहने-सुनने से उसने सलीम को क्षमा कर दिया। अब वही उसका इकलौता उत्तराधिकारी था। यद्यपि वह भी अपने भाइयों के समान शराबी था, परन्तु उसकी आयु शेष थी, उसके भाग्य में बड़ी-बड़ी ऐतिहासिक घटना का केन्द्र होना बदा था।
बाहशाह अकबर और अधिक दिन जीवित न रहे। सलीम के विद्रोह के तीन वर्ष बाद ही उनकी मृत्यु हो गई। जिस समय सलीम ने सिंहासन पर आरोहण किया, उसकी आयु छत्तीस बरस की थी। वह एक सुन्दर, छरहरे बदन और लम्बे कद का आकर्षक व्यक्ति था। रंग उसका गोरा था। वह गलमुच्छे रखता था, और आंखें उसकी तेज़ और चमकदार थीं। शिष्टाचार वह खूब जानता था, स्वभाव का सरल, और बातचीत में पटु था। दरबार के सब लोगों को उसने अपने व्यवहार से प्रसन्न कर लिया। अपने विरोधियों को भी उसने क्षमा कर दिया। उसकी न्यायप्रियता की शीघ्र ही लोगों पर धाक बैठ गई।
जहांगीर को अब सब कुछ मिल गया था, पर मेहरुन्निसा का कांटा उसके कलेजे में अब भी कसक रहा था। मेहरुन्निसा को वह नहीं भूल सका था। उसके रंगमहल में अनगिनत सुन्दरियां थीं, पर वह चौदह बरस की अल्हड़ मेहर, जिसका अकस्मात् ही दुपट्टा उड़ गया था, और क्षण-भर के लिए जिसके यौवन का सम्पूर्ण खज़ाना प्रकट हो गया था, उसके दिल से दूर नहीं हो सकी थी।
शेरअफगन अब बर्दवान में एक बहुत बड़े बाग में आलीशान महल बनवाकर रह रहा था। वह अपनी प्रिय पत्नी के दुर्लभ, अछूते यौवन का आनन्द दामोदर की तरंगित धाराओं के समान ले रहा था। दोनों सुखी थे, प्रसन्न थे। मेहर के हृदय में भी सलीम की वह नज़र खुब गई थी। वह कभी-कभी सलीम की उस चितवन के सम्बन्ध में सोचा करती थी। उसे यह भी ज्ञात था कि सलीम उससे विवाह करना चाहता था। वह कभी-कभी यह भी सोचती थी कि यदि ऐसा होता, तो वह एक दिन हिन्दुस्तान की मलिका बन जाती। परन्तु ये सब बातें धुंधली होती जा रही थीं। शेरअफगन का प्यार उसे झकझोर रहा था। वह अपने बर्दवान के महल में आनन्दित थी। अपने सौभाग्य पर उसे गर्व था। इसी समय उसे एक पुत्री की उपलब्धि हुई।
इस समय बंगाल राजविद्रोह का अड्डा बना हुआ था। बंगाल का सूबेदार इस समय कुतुबुद्दीन था। उसके पास एक गुप्त शाही फरमान पाया। कुतुबुद्दीन ने शेर-