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पृष्ठ:कहानी खत्म हो गई.djvu/६५

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वेश्या

वेश्या भी आखिर नारी है; फिर गुलबदन क्यों नारी के सहज गुणों के प्रतिकूल व्यवहार करती है, यह प्रश्न लेखक ने पाठकों पर छोड़ दिया है। इसपर आप जितना अधिक विचार करेंगे उतना ही आप वेश्या को निर्दोष पाएंगे।

शिमला-शैल की वहार जिसने आंखों से नहीं देखी उससे हम अब क्या कहें? बीसवीं शताब्दी का यन्त्रबद्ध भौतिक बल प्रतापी यूरोप के श्वेत दर्प के सम्मुख आज्ञाकारी कुत्ते की तरह दुम हिलाता है। फिर शिमला-शैल पृथ्वी के एकमात्र अवशिष्ट साम्राज्य की नखरेदार राजधानी है, जहां बैठकर दूध के समान सफेद और रमणी के समान चिकने सफाचट मुखवाले-परन्तु बहादुर साहब लोग-तुषार और शीतल वायु के झोंकों का अखण्ड आनन्द लेते हुए, लूओं में झुलसते हुए अस्थि-चविशिष्ट भारत के तैंतीस करोड़ मनुष्यों पर हुक्म चलाते हैं। जिनकी असली तलवार गहना, और कलम है, वे जो न करें सो थोड़ा। ग्रीष्म की प्रचण्ड धूप में घोड़े की पीठ पर लोहा लेनेवाले भारत के नृपतियों के वंशधर भी गोरी मिसों के हाथ की चाय पीने का लोभ संवरण न कर, अपनी निरीह अधम प्रजा को लूओं में झुलसते छोड़, ग्रीष्म में शिमला-शैल पर जा पहुंचते हैं। वही शिमला-शैल अपनी मनोरम घाटियों, हरी-भरी पर्वत-शृंखलाओं के पीछे सुदूर आकाश में हिमालय के श्वेत हिमपूर्ण शिखरों को जब सुनहरी धूप में दिखाता है, तब नैसर्गिक शोभा का क्या कहना है? फिर प्रकाण्ड धवल अट्टालिकाएं-जहां तडिद्दामिनी सुन्दरी अधम दासी की तरह सेवा करती हैं-जब सुरा और सुन्दरियों से परिपूर्ण हैं, तब इस प्रतापी ब्रिटिश-छत्रछाया में अभयदान प्राप्त महाराजाधिराजों और राजराजेश्वरों को अब और क्या चाहिए? दिन-रात सुरा-सुन्दरी और प्रभु-पद-वन्दन में उनकी ग्रीष्म इस तरह बीत जाती है, जैसे किसी नवदम्पति की सुहागरात। अजी, एक बार बिजली की असंख्य दीप-मालाओं से आलोकित उन प्रासादों में इन नरपुंगवों को लेवेण्डर से सराबोर वस्त्रोंवाली अधनंगी मिसों के साथ