पेरिस से मंगाए गए थे। एक उपयुक्त तथा सुखभोगमयी राल्स रॉयस मोटरगाड़ी सदैव उसकी सेवा में रहती थी, जिसपर वह सन्ध्या और प्रातःकाल की सैर करने बाहर निकलती थी। उसकी दूर की यात्रा के लिए महाराज की स्पेशल ट्रेन में उसके लिए सदैव एक कमरा रिज़र्व किया जाता था। ऐसे दुर्लभ राज-सुख उस बालिका को उसके यौवन के प्रारम्भ में नसीब हुए-केवल उस दृष्टि और उन फड़कते होंठों के बदले।
दस वर्ष व्यतीत हो गए। दिल्ली स्टेशन पर खूब धूम थी। किसी राजा की स्पेशल ट्रेन आ रही है। अंग्रेज आफीसर और कुली प्रत्येक के मुख पर यही एक बात थी। प्लेटफार्म सज रहा था और नगर के कुछ खास गण्यमान्य व्यक्ति महाराज की स्पेशल ट्रेन की प्रतीक्षा कर रहे थे। स्पेशल ट्रेन आई। खास कमरे पर खस के पर्दे पड़े थे और उनपर पानी ऊपर से टपक रहा था। बिजली के पंखे की सरसराहट बाहर से सुनाई पड़ती थी।
गाड़ी खड़ी होने के कुछ क्षण बाद एक उच्च पदस्थ कर्मचारी ने प्लेटफार्म पर समुपस्थित पुरुषों की अभ्यर्थना करते हुए कहा-श्रीमती महारानी महोदया आप सब सज्जनों की सेवा में अपना हार्दिक धन्यवाद देती हैं। श्रीमन्त महाराजाधिराज कल दूसरी गाड़ी से पधारेंगे। कारण-विशेष से वे इस समय न पधार सके। दो-एक सम्भ्रान्त पुरुषों ने महाराज के स्थान पर महारानी को ही अपना सम्मान प्रदान करने के लिए शिष्टाचार के दो-चार शब्द कहे।
हठात् सैलून का द्वार खुला और महारानी स्वयं उतरकर प्लेटफार्म पर आ खड़ी हो गईं। सम्भ्रान्त आगतजन इधर-उधर हट गए। महारानी बारीक धानी परिधान पहने थीं। बहुमूल्य हीरे के आभूषण उनके शरीर पर दमक रहे थे। कर्मचारी और दीवान अवाक् रह गए। महारानी ने किसीकी ओर लक्ष्य न देकर अपने खास खिदमतगार को हुक्म दिया कि वह उनका खास सामान गाड़ी से उतार ले। उनकी इस आज्ञा पर सभी चकित थे। हठात् एक व्यक्ति भीड़ से निकलकर महारानी के निकट आ खड़ा हुआ। महारानी ने आश्वस्त होकर कहा-ज़मीर! मैंने समझा, तुम्हें मेरा तार नहीं मिला! अच्छा, सब ठीक है?
'जी हुजूर, मेल जाने में अभी पौन घण्टा है, फर्स्ट क्लास का डिब्बा रिजर्व है। हुजूर के साथ और कितने आदमी हैं?'
क-४