चपेट खाकर युवती ने बिछौने से उठकर कहा। उसी तरह उसके होंठ फड़क उठे। उसने पूछा--और उन्हें?
'उन्हें गद्दी त्याग देने को विवश किया जा रहा है। सुना है, वे राजपाट छोड़कर यूरोप चले जाएंगे।'
युवती के होंठों में फिर फड़कन उत्पन्न हुई। उसकी दृष्टि दूर पर कांपते हुए वृक्ष के पत्तों पर अटक गई। उसके सारे शरीर में कम्प उत्पन्न हो गया। वह उठी। उसने ज़मीन में लात मारकर कहा-मैं अपनी मां की बेटी हूं, मेरा नाम है गुलबदन। बादशाहों की गद्दियां इन ठोकरों से बर्बाद होंगी और लोगों की जानें इन जूतियों पर कुर्बान होंगी--यह मैं जानती हूं, मगर ज़मीर!
'हुजूर।'
'बदला पूरा नहीं हुआ।
'सरकार, सेठ ने एक लाख रुपया आपके नाम विल किया है, यह अदालत में उनके सॉलीसीटर से मालूम हुआ।'
'सेठ दिलदार था, मगर महाराज न था। अफसोस है, बेचारा मर गया। अच्छा, मैं आज ही पंजाब जाऊंगी।'
'आज ही?'
'हां, मेरे एक दोस्त का तार आया है—वे मेरी इन्तज़ारी कर रहे हैं।'
'बेहतर हो कि यहां के झगड़े खतम होने पर जाएं।'
'बेवकूफ, परसों मेरे निकाह की तारीख है!' सुन्दरी एक मर्म-भेदिनी दृष्टि डालती चली गई।
'गुलबदन, बेरहमी न करो।'
'बेरहमी क्या करती हूं?'
'इस वक्त मैं तंगदस्त हूं, रुपया जल्द ही मेरे पास आने वाला है?'
'मगर मैं पेट में पत्थर बांधकर तो जी नहीं सकती?'
'तुम्हें क्या भूखों मरने की नौबत आ रही है? कोठी, बंगला, मोटर, नौकरसभी तो हाज़िर हैं। पांच सौ का मुशाहिरा भी कुछ कम नहीं!'
'मेरे नौकरों के नौकर ऐसे कोठी, बंगले और मोटरों पर औकात बसर करते हैं। और पांच सौ रुपया रोज़ाना खर्च करने की मैं आदी हूं!'