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पृष्ठ:कहानी खत्म हो गई.djvu/८३

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खूनी
 


और शान्ति की इच्छा ही मर गई दीखती है। बस, अब वही पत्र मेरे नेत्र और हृदय की रोशनी है। मेरा वारण्ट निकला था, मन में पाया कि फांसी पर जा चढ़ूँ फिर सोचा, मरते ही उस सज्जन को भूल जाऊंगा। मरने में अब क्या स्वाद है? जीना चाहता हूं। किसी तरह सदा जीते रहने की लालसा मन में बसी है। जीते-जी ही मैं उसे देख और याद रख सकता हूं।